Friday, July 31, 2020
शहीद-ए-आजम उधम सिंह जी की बलिदान दिवस पर शत शत नमन ...
क्या हम इन लड़ाकू विमानों की तरह प्रेम का स्वागत कर पाएंगे ?
Tuesday, July 28, 2020
लड़की एक वजूद
Sunday, July 26, 2020
अन्नाभाऊ साठे – एक भुला दिया गया हीरो, एक वाम-पंथी जो अम्बेडकरवादी बना
वीरांगना फूलन देवी : एक साहसी महिला
कहीं हम भूल ना जायें : आरक्षण के जनक, राजर्षी छत्रपती शाहुजी महाराज
Saturday, July 25, 2020
मान्यवर कांशीराम जी ही फूलन देवी को राजनीति में लायें थे।
Monday, July 13, 2020
मायावती ने बहुजन समाज के लिए छोड़ा घर
1977 में दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में जातिवादी व्यवस्था की बुराइयों पर आयोजित एक कार्यक्रम में 21 वर्षीय मायावती के जोरदार भाषण ने कांशीराम का ध्यान उनकी ओर खींचा. उस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता जनता दल के नेता राज नारायण थे जिन्होंने आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी का गढ़ माने जाने वाले रायबरेली से इंदिरा गांधी को हराया था. कार्यक्रम में राज नारायण बार बार दलितों को “हरिजन” कह कर संबोधित कर रहे थे. यह शब्द मोहनदास गांधी का दिया हुआ है और दलित इस शब्द से बेहद नफरत करते हैं. जब मायावती की बारी आई तो उन्होंने माइक्रोफोन पकड़ा और राज नारायण पर आरोप लगाया कि उन्होंने पूरी दलित जाति का अपमान किया है. अपनी जीवनी में वह याद करती हैं, ‘‘क्या हरिजन जातिवाचक शब्द नहीं है?’’ मुझे लगता है जाति की रुकावटों को खत्म करने के लिए हो रहा यह सम्मेलन अनुसूचित जाति के लोगों को गुमराह कर रहा है.’’ उनकी किताब के अनुसार जब उनका भाषण खत्म हुआ तो लोग उनके समर्थन में नारे लगाने लगे. वह कह रहे थे, ‘‘राज नारायण मुर्दाबाद, जनता पार्टी मुर्दाबाद’’ और ‘‘डा. अंबेडकर जिंदाबाद’’.
जब मायावती के जोरदार भाषण की बात कांशीराम तक पहुंची तो वह बहुत चकित हो गए. अंबेडकरवादी समूहों में जब आज भी बहुत कम महिलाएं नेतृत्वकारी भूमिका में हैं तो चार दशक पहले 21 साल की, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर महिला, जो अपनी दलित पहचान के प्रति राजनीतिक रूप से जागरुक और आक्रमक है, किसी ने शायद ही पहले सुना और देखा था. इसके कुछ दिनों बाद कांशीराम एक दिन बिना बताए मायावती के घर पहुंच गए. बातचीत के दौरान उन्होंने मायावती से कहा कि यदि वह जातीय उत्पीड़न से लड़ना चाहती हैं तो प्रशासनिक सेवा से ज्यादा ताकत राजनीतिक सत्ता से मिलेगी. उन्होंने मायावती को इस बात के लिए मनाया कि यदि वह उनके मिशन से जुड़ जाती हैं तो उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने का उनका सपना पूरा हो सकता है. कांशीराम ‘‘मिशन’’ शब्द को अक्सर इस्तेमाल करते थे. आज भी बसपा कार्यकर्ता अपने काम को इसी शब्द से परिभाषित करते हैं.
मायावती-कांशीराम संबंध की कहानी गुरु-शिष्य संबंधों के साथ ही उन संबंधों की बेड़ियों को तोड़कर शिष्या का अपने गुरु से सफल राजनीतिज्ञ बनने की कथा भी है. मायावती जो कर सकीं उसके लिए उन्हें असंख्य चुनौतियों का सामना करना पड़ा.
अपनी बेटी की राजनीतिक संलग्नता और कांशीराम के साथ बढ़ती नजदीकियों से चिंतित, पिता ने मायावती को यह कह कर चेतावनी दी कि उन्हें पार्टी या घर में से किसी एक को चुनना होगा. उनके पिता का कहना था कि वह एक अविवाहित महिला हैं इसलिए उनके पास पिता की बात मानने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं है. बेखौफ मायावती ने स्कूल टीचर की नौकरी से बचाए पैसों के साथ पिता का घर छोड़ दिया और दिल्ली के करोलबाग में बामसेफ के दफ्तर के बगल में कांशीराम के एक कमरे वाले घर में रहने लगीं. बसपा के पुराने नेता और ‘‘यह एक बड़ा लेकिन दृढ़ कदम था. कौन सी पार्टी थी जो मायावती के इंतजार में बैठी थी. वह कोई इंदिरा गांधी नहीं थीं कि ताज लेकर लोग इंतजार कर रहे थे. वह जयललिता नहीं थी जिन्होंने एआइएडीएमके की स्थापना के 10 साल बाद पार्टी में प्रवेश किया था. वो ममता बनर्जी भी नहीं थी जो लंबे समय तक कांग्रेस कार्यकर्ता रहीं और बाद में दूसरे बागियों के साथ पार्टी से अलग हो कर तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की. ‘‘मायावती ने खतरा उठाया और पार्टी को खड़ा करने के लिए जी जान एक कर दिया.’’
जब कांशीराम अपने स्वागत कक्ष में ताकतवर और प्रभावशाली लोगों के साथ बैठकें कर रहे होते तो मायावती आंगन में दरी बिछा कर ग्रामीण इलाकों से आए दलित पुरुषों को पार्टी में शामिल कर रही होतीं.
मायावती जो कर सकीं उसके लिए उन्हें असंख्य चुनौतियों का सामना करना पड़ा. ये चुनौतियां कभी सीधी सामने आती, कभी उन पर पीछे से हमला होता.
कांशीराम घर के फ्रिज में ताला लगा कर उसकी चाभी अपने पास रखते थे. उन्होंने मायावती और अन्य लोगों को कह रखा था कि जिन लोगों से वह स्वागत कक्ष में मिलते हैं उनके लिए ही कोल्ड ड्रिन्क लाई जाए.) जमीन पर बैठ कर मायावती रोजाना कम से कम पांच जिला संयोजकों से मिलतीं. धीरे धीरे उत्तर प्रदेश के हर जिले में उन्होंने अपनी पहुंच बना ली.
1984 में पंजाब और मध्य प्रदेश में कांशीराम की गतिविधियों को झटका लगा. पंजाब में ऑप्रेशन ब्लू स्टार और मध्य प्रदेश में भोपाल गैस त्रासदी के सामने उनकी गतिविधियां कमजोर पड़ गईं. इस बीच मायावती उत्तर प्रदेश में बिना थके काम करती रहीं. उस वक्त तक मायावती कुर्सी पर बैठ कर लोगों से मिलने लगी थीं. उनसे मिलने आए लोग जमीन पर बैठ कर उनसे बातचीत करते.
मायावती ने साबित कर दिया कि राजनीतिक काम को वोट में बदलने में वह कांशीराम से अधिक सक्षम हैं. 1984 में मायावती ने मुजफ्फरनगर जिले की कैराना लोक सभा सीट से चुनाव लड़ा. 1985 में उन्होंने बिजनौर उपचुनाव लड़ा और 1987 में हरिद्वार उपचुनाव लड़ा. इनमें से किसी भी चुनाव में मायावती को जीत नहीं मिली लेकिन मत संख्या में निरंतर बढ़ोतरी होती गई. कैराना में उन्हें 44 हजार वोट और हरिद्वार में 125000 वोट प्राप्त हुए. 1989 में बिजनौर से वह पहली बार चुनाव जीतने में कामयाब हुईं जबकि कांशीराम ने 1996 में पंजाब के होशियारपुर से पहली बार चुनाव जीता.
इन वर्षों में मायावती उत्तर प्रदेश में पार्टी को खड़ा करने में कामयाब होती जा रही थीं लेकिन दूसरे राज्यों में कांशीराम के प्रयास विफल होते जा रहे थे. साथ ही विचारक कांशीराम के विपरीत मायावती ने खुद को व्यवहारिक नेता के रूप में स्थापित किया. , ‘‘बसपा के लिए यदि कांशीराम कार्ल मार्क्स जैसे थे तो मायावती ‘कार्ल मार्क्स’ के दृष्टिकोण को लागू करने वाली व्लादमीर लेनिन.’’ मायावती की सफलता ने उन्हें राजनीति में ऊंचा रुतबा दिया और पूरी पार्टी में मजबूत पकड़.
जय भीम
जय कांशीराम
Thursday, July 9, 2020
" आदिवासी कहता है "ये किस तरह की सभ्यता है तुम्हारी?
Tuesday, July 7, 2020
माननीय सतीशचन्द मिश्राजी आज के तारीख में व्हॉलटीयर की भूमिका निभा रहे है.. यह कहना गलत नही होगा..
Monday, July 6, 2020
आज मीडिया में फिर खबर आयी की चीन 2 किलोमीटर पीछे हटा।
Wednesday, July 1, 2020
बीएसपी किसी के हाथ का खिलौना नहीं है।
बहन जी की रासुका कि फोटो हैं ये, कुछ मंन्दबुद्धी कहते हैं जेल नही गयी बहन जी। जब तुम पैदा भी न हुये थे न तब बहन जी पर रासुका भी लगी जेल भी गयी।
देश जगाने आया हूं मै देश जगा कर जाउंगा..
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छोटू सोनवानी (अकलतरा) |
सुनो कल के लड़को जितनी तुम्हारी उम्र भी नही हैं.. उतना 41 साल का तो बहन जी का सँघर्ष हैं.
👉सुनो कल के लड़को जितनी तुम्हारी उम्र भी नही हैं.. उतना 43 साल का तो बहन मायावती जी का सँघर्ष हैं.👈 यही हैं वो मासूम सी लड़की जो...

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बहुजन समाज: नौटंकी आंदोलन से दूर रहे बहुजन समाज पार्टी गौतम बुद्ध (बौद्ध धर्म) के सिद्धांत पर चलती है कोई भी लड़ाई युद्ध से नही ब...
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मायायुग की कहानी - बहुजन समाज के लिए एक सबक हैं कवर फोटो उपलब्ध कराने का क्रेडिट ( Sobran Singh सर को) बहन जी ने मीडिया खड़ी क...