माननीय सतीशचन्द मिश्राजी आज के तारीख में व्हॉलटीयर की भूमिका निभा रहे है.. यह कहना गलत नही होगा..

माननीय सतीशचंद्र मिश्रा आज के तारीख में व्हॉलटीयर की भूमिका निभा रहे है.. यह कहना गलत नही होगा...

बहूजन समाज के कुछ गद्दार और दलाल संघटन के नेता, कार्यकर्ता, पदाधिकारी  मिश्राजी की तुलना पुष्यमित्र शुंग से करके अपनी ही मूर्खता का परिचय समाज को करा रहे है। इसी तरह मिश्राजी के बारे में  झूठी मनगढंत कहानियां लिखकर समाज के सामान्य कार्यकरताओं को गुमराह कर रहे है, समाज के सामान्य कार्यकर्ताओने इन असामाजिक तत्वों से सावधान रहना चाहिए.. पुष्यमित्र शुंग, विभीषण की भूमिका तो मूलनिवासी संघटन के नेता निभा रहे है। 


यह असामाजिक तत्व ऐसी हरकते मनुवादियों के इशारों पर कर रहे है ताकी बुध्द फुले शाहू डॉ आंबेडकरजी का मिशन कमजोर हो। अगर महापुरुषोक़ा मिशन कमजोर होगा तो बसपा भी कमजोर होगी, अगर बसपा कमजोर होते रहेगी तो रिपब्लिकन पार्टी की तरह बसपा भी खत्म होगी, फिर उसके बाद मनुवादी व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष करने के लिये कोई आगे नही आएगा। अगर ब्राम्हणवाद कायम रहता है तो मूलनिवासी संघटन की आर्थीक परिस्थिति भी मजबूत होते रहेगी, बल्कि मजबूत ही है। इन मूलनिवासी संघटनों का टारगेट ब्राम्हणवाद नही है बल्कि बसपा और बहन मायावतीजी है, जिसे बदनाम करके यह लोग समाज को डाइवर्ट करना चाहते है। अगर मूलनिवासी संघटनो का ब्राम्हणवाद टारगेट होता तो इनके नेताओं ने ब्राम्हण बनिया ठाकुरों के खिलाफ चुनाव लड़ना चाहिए था। क्योंकि "राजनीति ही ऐसा एक शस्त्र है जिससे ब्राम्हणवाद को नेस्तनाबूत किया जा सकता है" यह बाबासाहब के विचार है। 

अगर मिश्राजी ब्राम्हणवादी होते तो जिस समय बहनजी ने 2004 में अपनी पूरी गर्दन उनके हाथ मे दि थी, उसी समय मिश्राजी ने गर्दन को दबाकर बहनजी को खत्म कर दिया होता.. मतलब मनुवादियो ने बहनजी पर आय से अधिक संपत्ति का मामला, ताज कॉरिडोर घोटाला जैसे अनेक आरोप लगाकर सीबीआई के माध्यम से चार्जशीट बनाई तब कांशीरामजी ने सतीशचन्द्र मिश्राजी संघटन के लीगल सल्लगार इस पोस्टपर नियुक्त किया और बहनजी ने अपनी पूरी केस की जिम्मेदारी मिश्राजी के हाथ मे सौंप दी और बहनजी 2004 के लोकसभा चुनाव और 2007 के विधानसभा चुनाव में अपने आपको फ्री कर दिया। 2007 में बहुमत से सरकार बनाली.. अगर मिश्राजी बेईमान ब्राम्हणवादी होते तो, मिश्राजी ने बहनजी के केस को कमजोर कर दिया होता और बहनजी को जेल के अंदर पहुंचाया होता..और 2004 में बसपा के 19 एमपी चुनकर नई आये होते और 2007 में पुर्ण बहुमत से सरकार नही बनी होती..  भलेही 2012 से बसपा का जनाधार घटा नही, लेकिन बसपा राजनीतिक रूप से कमजोर जरूर होते आयी। जब बसपा कमजोर हुई तो बसपा के ही पदाधिकारियों ने बसपा को छोड़ दिया और दूसरी मनुवादी पार्टियां ज्वाइन की, लेकिन बसपा कमजोर होने के बाद भी सतीशचन्द मिश्राजी एक मिशनरी कार्यकर्ता की तरह आज भी बसपा के साथ खड़े है और बहनजी के प्रत्येक दिशा निर्दशों का पालन कड़ाई से करते रहते है। 

आप पार्लियामेंट में मिश्राजी के द्वारा रखे गए सभी मुद्दे की जांच कीजिये.. और खुले मन से खुद तय करे कि माननीय सतीशचन्द्र मिश्राजी ने ब्राम्हणवाद के समर्थन के कितने मुद्दे उठाए और दलित, शोषितों, पीड़ितों के समर्थन में और ब्राम्हणवाद के विरोध में कितने मुद्दे उठाए। तब आपको पता चलेगा कि सतीशचन्द्र मिश्राजी ने एक सच्चे मिशनरी वर्कर की तरह आज तक सभी मुद्दे मनुवाद, ब्राम्हणवाद के खिलाफ ही उठाये जिस तरह 1925 से 1932 तक बाबासाहिब आंबेडकरजी के समय उनके संघटन के वरिष्ठ पदाधिकारी बापूसाहेब सहस्त्रबुद्धे जो ब्राम्हण समुदाय से थे, एक सच्चे मिशनरी कार्यकर्ता की तरह बाबासाहिब के साथ खड़े थे और अछूतों के समर्थन में मुद्दे उठाते थे। बाबासाहब के साथ चमारवाड़े में उनका दिया हुआ भाषण तारीफे काबिल था। 


सतीशचंद्र मिश्रा जिस ब्राम्हण वर्ण से आते है, जिस ब्राम्हणवादी व्यवस्था में उनका जन्म हुआ आज उसी ब्राम्हणवादी व्यवस्था के खिलाफ उन्होंने विद्रोह किया। इसलिये माननीय सतीशचन्द मिश्राजी को आज के तारीख में व्हॉलटीयर कहना गलत नही होगा..

आप लोग निचे छायाचित्र में देख सकते हो कि मिश्राजी एक मिशनिरी कार्यकर्ता की तरह बहनजी की सूचनाओं को गम्भीर रूप से सुन रहे है।।








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