Tuesday, July 28, 2020

लड़की एक वजूद



लड़की एक वजूद 


आज फेसबुक पर एक लेख दिखा.... मैंने देखा कि, उस लेख की शुरूआत कुछ इस तरह थी...."मेरी माँ कहती है कि, एक औरत को सिर्फ अपने पति के सामने ही अपना शरीर दिखाना चाहिए,अपने पिता ये भाई के सामने बेशर्मी से अपना शरीर दिखाना हमारी संस्कृति नही है"

उस पूरे लेख का निष्कर्ष यह था कि, लड़कियों को जिस्म अपने पति के अलावा किसी और को नही दिखाना चाहिए क्योंकि यह भारतीय सभ्यता नही है....
एक बड़ा पुरुष वर्ग लेख  से सहमत दिखाई दिया उस पोस्ट में...

परन्तु लड़की के शरीर के बारे में मेरे अपने कुछ व्यक्तिगत विचार हैं....जो आपसे साझा कर रही हूँ...

लडको से कहीं ज़्यादा सेक्सुअल डिज़ायर लड़कियों में होता है ....इसकी पुष्टि विज्ञान भी करता है... 

                              

विपरीत सेक्स के शरीर को देख कर नसें लड़कों की तन जाती हैं पर लड़कियों की नही क्यो??

क्योंकि समाज ने यह व्यवस्था बनाई है ...

बहुपत्नी प्रथा आम लगती है पर बहुपति प्रथा ज़रा अटपटी लगती है....क्यों???

कई आदिवासी कबीलों में  स्त्रीयों के वक्ष को ढंकने का रिवाज नही है ...और यह चौंकाने वाली बात है कि, आदिवासियों में चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज या दुष्कर्म जैसी घटनाएं न के बराबर होती हैं।।।

दुष्कर्म जैसी प्रथा हम सम्भ्रांत लोगो मे प्रचलित है....

इसलिए हमारी बहन या बेटी सुरक्षित रहे यथा पर्दा प्रथा हमारी सभ्यता की निशानी बन गयी..

कपड़ों के सम्बंध में मेरे विचार यह हैं कि, बचपन मे अपनी बेटी या बहन को बिना कपड़े हम सब देखते है ...वात्सल्य की दृष्टि से।।।
पर जब वही बहन या बेटी युवा होती है तब हम उसे शरीर को ढंकने की हिदायत दे डालते हैं...क्योंकि रिश्ता तो वही है...बस शरीर विकसित हो गया।।।।और इन सम्भ्रांत समुदायों में शरीर देख कर ही वासना जागृत होती है।।।

रही बात पति और पत्नि के रिश्ते की....तो अपने साथी के प्रति सेक्सुअल आकर्षण होना प्रकृति प्रदत्त है...

या जिसे साथी बनाने की चाह हो उसके प्रति सेक्सुअल आकर्षण होना सामान्य है...
और ऐसा लड़की, लड़के ,गे ,लेस्बियन, क्वीर सबके साथ होता है...

पर इस आकर्षण का कपड़ों से कोई लेना देना नही है….न ही जिस्म से.....यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है..

क्यों हम लड़कियों के वक्ष को उसकी योनि को हाथ और पैर की तरह स्वीकार नही पाते?

हम सभ्य लोगो की ये कैसी सभ्यता है कि, माहवारी की बात को छुपाना पड़ता है..??

ये कैसी सभ्यता है जिसमें लड़की की खुली टांगें देख कर उसे वेश्या कह दिया जाता है??

इन सब का एक जवाब है पितृसत्ता....

इस पितृसत्ता मे पुरुष को कहीं भी मूत्रर्विसर्जन करने की आज़ादी है..

किसी के साथ भी सेक्स करने की आज़ादी है सहमति से या जबरजस्ती...क्योंकि पुरुषों का ऑर्गेज़म ज़रूरी है...

यह किसी भी पुरूष के बारे में व्यक्तिगत नही है यह पुरी व्यवस्था की बात है कि, बीवी का काम है पति को सुख दे...

बहन का काम है पिता या भाई के अधीन रहे...,और माँ का काम है सभी पुरुषों की सेवा करे  और बहू से सेवा ले..बस सदियो से ये चक्र चल रहा है....


और यह चक्र बस हम तोड़ सकते हैं..

अंत मे बस यही कहूँगी.... अश्लीलता कपड़ों में नही...विचारों और नज़र में है






रोशनी बंजारे चित्रा
 रोशनी बंजारे "चित्रा" ( लेखिका )



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