इसके लिए एक पुरानी कहानी लिखना चाहता हूँ । भिक्खु पणण भगवान बुद्ध के समय उनका संदेश फैलाने के लिए मथुरा प्रदेश में जाना चाहते थे । उन्होंने भगवान बुद्ध से जाने की अनुमति मांगी । भगवान बुद्ध ने कहा पणण, वहाँ के लोग भयंकर हैं । वह तुम्हे गाली गलौच करके अपमानित भी कर सकते हैं ? पणण कहते हैं- "मैं समझूंगा, उन्होंने सिर्फ मुझे गाली ही दी । वे मुझें मार भी सकते थे ।"

ऐसी ही मिलती-जुलती बात बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी ने कही थी । उनका मतलब था जिन लोगों को अपना चरित्र और पावन लक्ष्य पर विश्वास है, वे धन्य हैं । जो मान की, अपमान की परवाह नही करते, वे धन्य हैं ।जो बारिश की, गर्मी की, ठंडी की, जंगलों की, रेतीले मैदानों की परवाह न करते हुए अपने मिशन को आगे बढ़ाने का कार्य करते हैं, वे धन्य हैं । इससे भी ज्यादा हम क्या कह सकते हैं ।

एक बार मान्यवर कांशीराम साहब ने कहा था-"इस शरीर से जितना बन सके, उतना काम करना चाहिए बाद में यह तो मिट्टी में मिल जाना है ।"
संत कबीर साहब ने भी कहा है--ए
इस तन मन की कौन बड़ाई ।
देखत, इसको तो मिट्टी मिलाई ।।
जय भीम
रमेश जाटवर
(लेखक)
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