Saturday, September 19, 2020

अंबेडकरवादी चार तरह के होते हैं :- साहब कांशीराम

अंबेडकरवादी चार तरह के होते हैं :- साहब कांशीराम




 बंगा- नवांशहर ( पंमी लालो मजारा)

1. हरिजन अंबेडकरवादी।

2. ब्राह्मणवादी अंबेडकरवादी।

3. बिकाऊ अंबेडकरवादी।

4. टिकाऊ अंबेडकरवादी ।

1. हरिजन अंबेडकरवादी :-

      ऐसा अंबेडकरवादी बार-बार हरिजनों  के ऊपर अत्याचार या बार-बार बलात्कार की बातें तो मस्का लगा लगा कर करेगा। पर जब कहीं समाज को उसके सहयोग की जरूरत महसूस होगी तो वह उनके साथ खड़ा हुआ नजर आएगा जिनके साथ उसका लेनदेन हुआ होता है। 


2. ब्राह्मणवादी अंबेडकरवादी :-

        ऐसा अंबेडकर वादी मंच से ब्राह्मणवाद  तथा रामायण, गीता और महाभारत की खूब धज्जियां उड़ाएगा। पर घर पहुंचते ही घरवाली को साथ लेकर घंटों हाथों में  घंटियां  पकड़ कर बजाता हुआ, नायक पूजा करता हुआ नजर आएगा।

3. बिकाऊ अंबेडकरवादी :-

        इस तरह का अंबेडकरवादी बाबा साहेब की जयंती भी मनाता है और परिनिर्वाण दिवस भी। उसका मंच हमेशा दूसरों के लिए खुला रहता है । मतलब कि कोई भी उसके मंच को अपने हितों के लिए इस्तेमाल कर सकता है। बदले में उसको मंच पर कुर्सी जरूर मिलनी चाहिए और साथ ही उसकी जेब गर्म होनी चाहिए।
 
 4. टिकाऊ अंबेडकरवादी :-

        ऐसे अंबेडकरवादी की ना तो कोई अकड़ होती है और ना ही कुर्सी की भूख वह ना ही कोई लोग दिखावा। वह बाबा साहेब का जन्मदिन भी मनाता है और परिनिर्वाण दिवस भी। पर मनाता अपने समाज में से थोड़े थोड़े पैसे इकट्ठे करके है। ऐसे अंबेडकरवादी के प्रोग्राम में और मंच में सिर्फ उसके अपने समाज के लोग ही सुशोभित होते हुए नजर आते हैं। ना कोई ब्राह्मण बैठा नजर आएगा ना ही कोई ठाकुर।
       साहिब ने उपरोक्त ऐतिहासिक शब्द 1990 को कोलकाता के सबसे बड़े गुरु रविदास मंदिर मे उच्चारण किए थे। साहब अपने बेशकीमती समय में से  केवल 15 मिनट निकालकर पधारे थे।

* बहुजन आंदोलन अगर चलाना है तो महात्मा फुले की किताब पढ़ लो। अगर बहुजन आंदोलन को हाशिए पर धकेलना हो तो महाराष्ट्र के महारों से सीख लो 
:-  साहब कांशी 
(मेरी आ रही पुस्तक में कांशीराम बोल रहा हूं मैं से) लेखक -पंमी लालोमज़ारा.( पंजाब  ) 

Wednesday, September 16, 2020

सिंह साहब के विद्यालय से :- कल की अमर उजाला अखबार की पोस्ट से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बातें आज


कल की अमर उजाला अखबार की पोस्ट से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बातें आज ।

गौर तलब है ! बहुजनों की खबर को दलितों की खबरें बना कर चतुर्थवर्ण व्यवस्था के ही अनुरूप अखबार के अंतिम कॉलम 7वें 8वें में स्थान देना । जबकि मान्यवर कांशीराम साहब के अथक प्रयासों से बहुजन समाज पार्टी  सन 1995 तक आते आते भारत की राजनीति का केंद्र बिंदु बन चुकी थी। जबकि लेख के लेखक की यह बात उसके  लेख के उक्त शीर्षक "दलितों पर केंद्रित होती राजनीति" से बिल्कुल ही स्पष्ट हो रही है अर्थात एक मायने में लेख के शीर्षक में ही लेखक की स्वीकारोक्ति छिपी हुई है ।


साहब (कांशीराम) ने जिस दिन बहुजन समाज पार्टी का गठन किया था उसी दिन कहा था कि #बहुजनसमाज के बनते ही हम इस देश के शासक बन जायेगें । बहुजन समाज को शासक बनने से कोई ताकत नहीं रोक सकती है । क्योंकि बहुजन समाज के पास 100 में 85 वोट हैं और लोकतंत्र में हमेशा ज्यादा वोट वालों की ही हुकूमत होती है।

" जीतेगा भई जीतेगा,वोटों वाला जीतेगा
   हारेगा भई हारेगा, नोटों  वाला  हारेगा  "

मैं समझता हूँ आप ये बसपा का नारा अभी तक बहुजन भूले नहीं होगें और यह भी साहब ही कहते थे कि शासक वर्ग कभी भी दलित नहीं होता । ताज्जुब तो तब होता है जब आज का मिडिया महामहिम राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविद जी को दलित राष्ट्रपति लिखता है ? बहन सुश्री मायावती जी को दलित की नहीं दौलत की बेटी बताता है ?? क्या किसी का चार बार की मुख्यमंत्री बनने के बाद भी दौलतबंद बन जाना गुनाह है ??? उनको आप आज भी  दलित ही मान रहे हो । इतना दोगलापन इनके पास कहाँ से आ रहा है ?  निश्चित ही संविधान लागू होने के सत्तर साल बाद भी इनके दिमाग से मनुस्मृति नहीं निकल पा रही है यह वही लेखन में इनके संस्कार झलक रहे हैं ।


 इसी सब को ध्यान में रखते हुए साहब ने आपको सिर्फ और सिर्फ #बहुजन  शब्द के इस्तेमाल पर सबसे ज्यादा जोर देने के लिए, बहुजन समाज पार्टी बनाते समय 14 अप्रैल 1984 को आगाह भी किया भी था। इसको चतुर चालक मनुवादियों ने बड़ी अच्छी तरह से उसी समय  जान भी लिया था। तभी वह सोची समझी रणनीति के तहत दलित शब्द पर फ़ोकस बनाये हुए हैं ।  बड़ी ही मुश्किल से संघर्षों के बाद बहनजी आपको शब्द 'हरिजन' से मुक्ति दिला पाईं थीं और आप हैं कि दलित में उलझ कर रह गए हैं । दुख तो तब और ज्यादा होता है कि 'हरिजन' शब्द को आप पर थोपने के लिए गांधी एंड कंपनी को उधोगपति मारवाड़ी बनियां बिड़ला के पैसे से 'हरिजन' अखबार निकलने का सहारा लेना पड़ता है और आज आप साधनहीन बहुजनों में  'दलित' नामक पत्र पत्रिकायें निकलने की होड़ मची हुई है? बहुजन बुद्धिजीवी वर्ग भी 'दलित' शब्द को गले लगाने की पैरोकारी करता नजर आरहा है ? ऐसे बहुजन समाज को दुश्मनों की क्या जरूरत है ? 
 
"संभल के रहना अपने घर में छिपे हुए गद्दारों से।"


इस लेख में कई बार लेखक इस बहुजन सरकार को दलित अल्पसंख्यकों की सरकार लिख रहा है ? जबकि यह सरकार श्री कांशीराम जी ( अनुसूचित जाति ) और श्री मुलायम सिंह जी ( ओबीसी ) के गठबंधन पर 85 फीसदी बहुजनों के वोटों से बनी  भारत के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की पहली "बहुजन" सरकार थी । क्या किसी भी मिडियाकर्मी ने इसे "बहुजनों" की सरकार लिखा ? अगर नहीं लिखा तो हमें सोचना होगा कि यह सब क्या है ?  आज इस सरकार को बने लगभग 27 साल बीतने के बाद भी हम सिर्फ वही सोच पा रहे हैं जो ब्राह्मण बनियां मिडिया हमें सूचवा रहा है ? ये मिश्रा जी बसपा में क्या कर रहे हैं??बसपा बहुजन से सर्वजन क्यों बन गई ???  जब ये "बहुजनों" की सरकारों को दलित अल्पसंख्यकों की सरकारें बता रहे थे तब आप मौन क्यों थे ? लेखक का यह बता कर स्पष्ट उद्देश्य है मान्यवर कांशीराम साहब को दलितों तक और श्री मुलायम सिंह को अल्पसंख्यकों ही समेटना कहीं न कहीं इनको "बहुजनों" का नेता न बनने देना । 

जबकि वरिष्ठ पत्रकार श्री अभय कुमार दुबे जी उसी दौर में अपने ब्राह्मण समाज को यह समझते हुए नजर आ रहे थे कि यदि श्री कांशीराम  जी का "बहुजनसमाज" तैयार हो जाता है तो सोचो त्रिवर्णो  तुम्हारे पास क्या बचेगा तुम तो चुनाव में अपनी जमानत भी बचाने की हैसियत में भी नहीं रहोगे? सदियों से अल्पजन होकर तुम सरकार तो इन्हीं भोले भाले बहुजन समाज के दम पर ही तो बनाते आ रहे हो ?  अतः हर हाल में तुम्हारा प्रयास होना चाहिए कि किसी भी तरह से श्री कांशीराम जी का "बहुजनसमाज" तैयार नहीं होना चाहिए । सोचो ! अगर श्री कांशीराम जी का "बहुजनसमाज" तैयार हो जाता है तो, तुम महाअल्पसंख्यकों सवर्णों के पास बचेगा क्या? तुम तो हमेशा के लिए हाशिये पर पहुँच जाओगे और लेखक इस लेख में जिस कांग्रेस भाजपा को मुख्यधारा बता रहा है वह कैसे सरे आम आपकी आंखों में धूल झौंकने का धूर्ततापूर्वक दुःसाहस  करने का काम कर रहा है ? इन सवर्ण लेखकों की लेखनी सवर्ण समाज के हित में लिखने के लिए बाकई में काबिलेतारीफ है !!!

आगे लेखक इसी लेख में इस दलित ( बहुजन नहीं ) उभार का सेहरा भी ठाकुर विश्वनाथ प्रताप सिंह जी के सिर बांधने के लिए इस मंडल कमीशन रिपोर्ट के लागू करने का कारण भी  श्री वीपी सिंह को ही बताता है । जबकि वास्तव में यह मंडल कमीशन रिपोर्ट भी मान्यवर कांशीराम साहब के बहुजन समाज निर्माण हेतु त्रिस्तरीय ( सड़को पर, वोटक्लब पर और देशभर में मंडल कमीशन के समर्थन सेमिनार जैसे आयोजन करने का नतीजा ही थी ) आंदोलनों और चौधरी श्री देवीलाल और श्री कांशीराम साहब के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन की 48वीं वर्षगाँठ के मौके पर 9 अगस्त 1990 के  देशभर के किसानों के वोटक्लब पर महाविशाल सम्मेलन आयोजित करने से प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप जी को लगा कि कहीं ये आंदोलन मेरी कुर्सी ही न खींच ले इसलिए इस सम्मेलन के बेहद दबाब में आनन फानन में इसके ठीक दो दिन पहले 7 अगस्त 1990 को मंडल कमीशन रिपोर्ट को लागू करने के लिए बाध्य होना पड़ा था । इसके बाद ठाकुर साहब की धूर्तता देखिएगा अपने आकाओं भाजपा वालों को खुश करने के लिए ( उन दिनों श्री वीपी सिंह जी की केंद्र  सरकार भाजपा के सहयोग से चल रही थी ) , मंडल कमीशन रिपोर्ट लागू होने के दूसरे दिन ही अपने गृह जनपद इलाहाबाद से इसके विरोध में छात्र आंदोलन की शुरूआत व न्यायालय द्वारा इस पर रोक लगाने जैसे काम सब कुछ इन्हीं श्री वीपी सिंह जी के इशारे पर किये जाते हैं । फिर भी भाजपा लगभग तीन महीने बाद इनकी सरकार गिरा कर मूँछ वाले (VP Singh) की जगह दाढ़ी वाले ठाकुर ( श्री चंद्रशेखर जी ) जी को प्रधानमंत्री बनवाने का काम करती है ।

इस सबमें सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू जो है वह यह है  कि बहुजन समाज के ही वरिष्ठ पत्रकार , शिक्षाविद अपनी  ( जिनकी योग्यता बेशक काबिलेतारीफ है। ) पाठशाला में मेज पर किताबों के ठेर सजा कर के  ज्ञान देते हैं की मंडल मसीहा श्री विश्वनाथ प्रताप जी हैं नकि मान्यवर कांशीराम साहब । यह बात ठीक वैसी ही लगती है , जैसे कि कभी गांधी को हरिजनों का असली मसीहा बताया जा रहा था और  उनके सामने जैसे बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर जी तो कुछ भी नहीं हैं ?  जबकि असलियत में बाबा साहब ही बहुजन समाज की माँ थे और गांधी नर्स ठीक इसी तरह मान्यवर कांशीराम साहब बहुजन समाज की माँ हैं और श्री  वीपी सिंह जी आया ( नर्स ) हो सकते हैं ? यह अंतर पाठशाला प्राचार्य जी को अच्छी तरह से मालुम होने के बावजूद भी आप सब को किस मजबूरी के चलते उनकी पाठशाला में गलत पाठ्यक्रम पढ़ाया जा रहा है ? यह समझ से परे है । ये सब विद्वानों की विद्वत्तापूर्ण बातें हैं, वही ये सब जाने ?

अब कुछ बात बहुजन किसान लोकप्रिय नेता चौधरी चरण सिंह जी के बारे में भी कर ली जाए,1984 में जब बहुजन समाज पार्टी का मान्यवर कांशीराम साहब द्वारा गठन किया गया तो उसी साल चौधरी साहब ने बसपा और लोकदल के समझौते के वास्ते साहब को अपने आवास पर बुलाया भी था । ( विस्तृत विवरण एपिसोड (13) में देख सकते हैं ) लेकिन तब यह बात ब्राह्मणों के लेकर नहीं बनी थी । आपको जानकर आश्चर्य होगा की उसी साल चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश की सारी की सारी एक सीट को छोड़कर 85 में 84 सीटें जीत लीं थी । ऐसी कांग्रेस की प्रचंड लहर के बावजूद भी चौधरी चरण सिंह जी की अकेली बागपत सीट कांग्रेस को हारनी पड़ी थी । ऐसा जलवा था उस समय उत्तरप्रदेश की राजनीति में चौधरी साहब का । उधर उत्तरप्रदेश से सटे हरियाणा में भी बंसीलाल भजनलाल औऱ देवीलाल हरियाणा के तीन लाल हुआ करते थे । जिनका जलवा हरियाणा में हुआ करता था । ये सभी बहुजन समाज से ही ताल्लुक रखते हैं । क्या हुआ इन सब  बहुजन राजनीतिज्ञों का ? आज चौधरी श्री अजीतसिंह जी श्री अखिलेश के मार्फ़त गठबंधन में बमुश्किल तीन सीटें पा रहे हैं और जीत एक भी नहीं पा रहे हैं । यह सारे तथ्य किसी से भी छिपे हुए नहीं हैं । कहाँ है वह जो समता पार्टी कभी राष्ट्रीय पार्टी हुआ करती थी ? कहाँ गईं पूर्व प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर जी की सजपा ?? ये सब पार्टीयाँ बहुजन समाज पार्टी के बाद अस्तित्व में आई हैं । लेकिन आज दूर दूर तक इनका कुछ भी अता पता  नहीं है । और आप कह रहे हैं कि बहनजी क्या कर रहीं हैं ? ट्वीटर ट्वीटर न खेलें सड़क पर आंदोलन क्यूं नहीं करती हैं ? अगर बहनजी आपके हिसाब से चलती तो निश्चित ही आज बसपा भी समता या सजपा की गति को प्राप्त हो चुकी होती । अच्छा किया बहनजी ने जो आपकी नहीं सुन रहीं हैं ? और अपनी कुशल रणनीति से बसपा को निरंतर आगे ही बढ़ाये जा रहीं हैं तमाम सारे विभीषणों के बावजूद भी ।

पिछले पाँच साल से आपको हाथी का अंडा दिखाई दे रहा था लेकिन एक साल से हाथी का स्ट्राइक रेट भारत की सब विपक्षी पार्टियों ( यहाँ तक देश में सबसे ज्यादा समय तक शासन करने वाली व भाजपा से भी ज्यादा साधन संपन्न पार्टी, कांग्रेस पार्टी ) को भी पीछे छोड़ते हुए  सबसे ज्यादा है वह आपको दिखाई नहीं दे रहा है । तमाम सारी विपक्षी राष्ट्रीय व क्षेत्रीय पार्टियाँ अंडा देना तो दूर की बात वह तो  मर चुकी हैं । तो अंडा देगीं कहाँ से ? यह भी आप नहीं देख पा रहे हो ?

अब अंत में कुछ बात बहुजनों की ही समाजवादी पार्टी की भी । अभी दो साल पहले उत्तरप्रदेश के 16 महापौर में 14 भाजपा और 2 बसपा के चुने जाते हैं । बिना किसी के किसी से भी गठबंधन के । सपा कांग्रेस को अंडा मिलता है । कहीं कोई चर्चा नहीं । पता नहीं हाथी कब से बच्चे की जगह अंडा देने लगा शायद 2014 से । बच्चों नोट कर लो आगे चल कर सामान्य ज्ञान का प्रश्न बन सकता है । सपा ने 1914 में पाँच लोकसभा सीट जीती थीं । बाद में बहनजी के इशारे मात्र से गोरखपुर फूलपुर और कैराना भी 3 सीटें सपा के खाते में आ जाती हैं । बहनजी के इस सहयोग पूर्ण रवैया से सपा की इस तरह कुल मिलाकर 5+3=8 सीटें की हो जाती हैं। जबकि बसपा और सपा में आधिकारिक तौर पर अब तक कोई समझौता नहीं हुआ था । यही बहनजी का सहयोग आगे चलकर बसपा सपा गठजोड़ का कारण बनाता है और 12जनवरी 2020 में 50-50 % सीटों का समझौता हो जाता है । उसके बाद प्रदेश भर में इनकी आमसभाएं होती हैं तो श्रीमती डिम्पल यादव जी कन्नौज की सभा में बहन सुश्री मायावती जी को बड़ी उम्र होने के नाते यथायोग्य  सम्मान देती हैं । वही बहनजी को श्रीमती डिम्पल यादव जी का सम्मान देना मिडिया को इतना अखर जाता है कि दूसरे दिन फोटो सहित सभी मनुमिडिया उसको इतना हाईलाइट करते हैं कि भोला भाला बहुजन समाज एक बार फिर इस मनुमिडिया की गिरिफ्त में आ करके उन्हीं श्रीमती डिम्पल यादव जी को कन्नौज सीट से हरवाने का काम कर देता है ।  सिर्फ इसलिए की उन्होंने उम्रदराज बहनजी को इतना सम्मान क्यों दे दिया ? अगर आपकी ये मनुवादियों वाली मानसिकता नहीं होती तो आज सपा की भी 8 से घटकर 5 सीटें न होकर कम से कम 8 से बढ़कर 18 सीटें हो गई होती । और बसपा की 10 के स्थान पर 15 व रालोद भी कम से कम 1 या 2 सीट जीत ही लेता । इस तरह बावजूद EVM उत्तरप्रदेश की लगभग आधी सीटें इस गठबंधन के पास होती और ऐसे हालात में कोई भी बहुजन समाज पर जुल्म ज्यादती करने की बात  तो दूर की बात कोई आंख भी मिलने की हिम्मत भी नहीं कर सकता था ।

आपको एक बात बता कर आज की अपनी बात समाप्त करना चाहूँगा। ये आजतक चैनल का जो नाम है वह श्री  एस पी सिंह ( सुरेंद्र प्रताप ) पत्रकार महोदय का दिया हुआ है । जब श्री मुलायम सिंह जी पहली बार  मुख्यमंत्री बनने के बाद केरल गए तो वहाँ इनका बड़ा ही स्वागत सत्कार हुआ था । यह सब श्री एस  पी सिंह जी को बड़ा ही नागवांर   लगा इन्होंने तब अमर उजाला में एक लेख श्री मुलायम सिंह यादव जी के बिल्कुल ही उनकी प्रसिद्ध के खिलाफ लिख डाला था कि श्री मुलायम सिंह जी की गड्डी गई गड्ढे में , उस पर उसी समय मेरी प्रतिक्रिया थी की आप कितना भी जोर लगा लेना  Mr.SP Singh jee श्री मुलायम सिंह की गड्डी को गड्ढे में नहीं डाल पाओगे ? इस बात को आज तीस साल होने को आये हैं लेकिन अफसोस एस पी सिंह तो इस दुनियां से कूच कर गए हैं लेकिन श्री मुलायम सिंह जी की गाड़ी आज भी बदस्तूर दौड़ रही है । अपनी बात अमर उजाला से शुरुआत करके आज की बात अमर उजाला पर ही समाप्त करना चाहता हूँ । 



                                             
Sobran Singh
                                                                 

Tuesday, September 15, 2020

सिंह साहब के विद्यालय से :- अतुलनीय महिला कु. मायावती

सिंह साहब के विद्यालय से :- अतुलनीय महिला कु. मायावती




आज आपके लिए अठारह साल पहले बहनजी के जन्मदिन के मौके, 15 मार्च 2002 पर जारी की गई लेखक श्री अशोक गजभिये जी की किताब " अतुलनीय महिला मायावती " की प्रस्तावना जोकि मान्यवर कांशीराम साहब ने खुद लिखी थी, उसका हिंदी अनुवाद। 

एक अनुरोध इसे समय निकल कर पढ़े जरूर ही आपको तत्कालीन मिशन-मूवमेंट की जानकारियां जोकि 
साहब के खुद ही इस पुस्तक की प्रस्तावना के माध्यम से आपको उपलब्ध करवायीं हैं। जो निश्चय ही 
आपकी तर्कशीलता बढ़ाने में सहायक सिद्ध होंगी।
सोबरन सिंह आगरा से


           अतुलनीय महिला कु. मायावती

BSP SUPREMO






इन दिनों मेरे लिए गंभीरता से कुछ लिखने की असमर्थता का प्रमुख कारण समयाभाव ही रहा है, इसी दौरान श्री अशोक गजभिये कई बार मुझसे आग्रह करते रहे कि इनके द्वारा लिखित पुस्तक " अतुलनीय महिला मायावती " की प्रस्तावना और कुमारी मायावती का परिचय मैं अपने शब्दों में लिखूं। कु० मायावती का मार्गदर्शक और सदुपदेशक होने के नाते मेरे लिखने की इच्छा तो बहुत थी परंतु मैं निर्णय नहीं ले पा रहा था कि कहाँ से आरंभ करूँ और कहाँ समाप्त।  आज दिनाँक सत्रह मार्च सन २००१ को कु० मायावती ने ही लेखक द्वारा हाल में किये गए निवेदन के बारे में मुझे अवगत कराया कि उनकी पुस्तक की प्रस्तावना मैं खुद लिखूं, जिसे वे शीघ्र प्रकाशित करना चाहते हैं। समय की अनुउपलब्धता को ध्यान में रखते हुए मैंने निश्चय किया कि कु० मायावती के केवल महान विशिष्टताओं पर ही प्रकाश डालूं।
अदम्य साहस

कु० मायावती के अंदर निहित महान विशिष्टताओं ने ही इन्हें अद्वितीय महिलाओं की श्रेणी में ला खड़ा कर दिया। मेरे विचार से इन्हीं विशिष्टताओं ने इन्हें अदम्य साहसी बना दिया। रामलीला मैदान दिल्ली में आयोजित सभा में एक विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए इन्होंने अपना संपूर्ण जीवन उस शोषित समाज के उत्थान के लिए समर्पित करने की घोषणा कर डाली जिस समाज में इन्होंने जन्म लिया। इनकी इस घोषणा से वातावरण हर्षोउन्मादित नेताओं के तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा, परंतु इनके शोषित समाज के उत्थान के लिए समर्पित सम्पूर्ण जीवन का मनतव्य इनके पिता को पसंद न था, वे तो अपनी पुत्री के आरामदेह जीवन व्यतीत करने की अभिलाषा अपने मन में संजोए हुए थे।

पीड़ित और शोषित वर्ग के उत्थान के लिए महात्मा ज्योतिबा फुले द्वारा शुभारंभ संघर्ष को छत्रपति शाहू महाराज ने गति प्रदान की, जिसे बाबासाहेब आम्बेडकर ने सम्पूर्ण भारत में सफलता की ओर अग्रसर करते हुए संघर्ष क्रम जारी रखा, समय की माँग को देखते हुए कांशीराम ने इसी संघर्ष को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठा लिया। अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध कुमारी मायावती ने भी इसी संघर्ष में अपने आप को जोड़ने का निश्चय कर लिया। उसी समय उनके धैर्य के परीक्षा की घड़ी भी आ गई। इनके दृढ़ निश्चय के विरुद्ध अपने पिता के प्रतिकार के फलस्वरूप इन्हें अपना घर त्यागना पड़ा। उन दिनों मैं दौरे पर था , वापस आने पर मैंने देखा कि कुमारी मायावती कुछ अन्य कर्मचारियों के साथ कार्यालय में ही रह रहीं हैं। सरकारी स्कूल में अध्यापिका होने की वजह से वे पूर्णरूप से आत्मनिर्भर थीं, अपने करोलबाग स्थिति कार्यालय के समीप ही मैंने इनके आवास की व्यवस्था करवा दी।अध्यापन कार्य वे सुबह ही कर लेती थीं और शेष समय कार्यालय का काम देखती थीं, तथा कानून के अध्ययन के लिए शाम के समय कॉलेज जाया करती थीं, इस तरह से इन परिस्थितियों का सामना करते हुए इन्होंने कानून में स्नातक की उपाधि प्राप्त कर ली। इस बार इन्हें धैर्य की परीक्षा से गुजरना पड़ा, संगठन से जुड़े हुए इनसे वरिष्ठ कार्यकर्ताओं द्वारा इनका सख्त विरोध होने लगा, अपने को संगठन में पूर्णरूप से स्थापित करने के लिए उनके खिलाफ भी संघर्ष करना पड़ा।

सन १९८४ में लोकसभा का आमचुनाव दिसंबर के महीने में होने वाला था, और इन्होंने चुनाव लड़ने का मन बना लिया था। बहुजन समाज पार्टी के किसी भी उम्मीदवार को इस चुनाव में सफलता मिलने की संभावना कम ही थी, पार्टी के कई लोग इन्हें चुनाव न लड़ने की सलाह भी दे रहे थे, क्योंकि ये एक सरकारी कर्मचारी थीं, चुनाव में भाग लेने से सरकारी नौकरी खोना पड़ सकता था। धैर्य की परीक्षा से इन्हें एक बार फिर गुजरना पड़ा, इन्होंने एक साहसिक कदम उठाया और चुनाव में भाग लेने के लिए सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया, चुनाव में इन्हें सफलता तो नहीं मिली और इनकी नौकरी भी नहीं रही, लेकिन इनसे वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की नौकरियाँ सुरक्षित थीं। इनके इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मैं इन्हें अपना पूर्ण सहयोग और अधिक अवसर प्रदान करने लगा। सन १९८५ में बिजनौर लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव में भाग लेने की पूर्व तैयारी करने के लिए इनसे कहा गया था, गाँव-गाँव जाकर प्रचार अभियान का कार्य इतने प्रभावशाली ढंग से किया कि एक वर्ष की अवधि में ही पिछले बार प्राप्त९७०० मतों की अपेक्षा इस बार इन्होंने ६५००० मतों को प्राप्त किया।

इसके उपरांत बिजनौर के नजदीकी चुनाव क्षेत्र हरिद्वार की उम्मीदवारी के लिए उपचुनाव सम्पन्न कराने का आदेश जारी हो गया। इस चुनाव के लिए भी इन्होंने बहुत अच्छी तरह से तैयारी की जिसके फलस्वरूप १३६००० मत प्राप्त कर सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के बाद दूसरे नम्बर पर आयीं थीं। इस तरह से इन्होंने पहले के आमचुनाव में ९७०० मतों के मुकाबले इस उपचुनाव में १३६००० मत प्राप्त कर बहुजन समाज पार्टी को १४ गुना मतों की बढ़ोतरी प्राप्त कर दी। चुनावों में इनकी उपलब्धियों को देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई लेकिन इनसे वरिष्ठ कार्यकर्ताओं  में कुछ नाराजगी की झलक दिखाई देने लगी और उनका मुझ पर दबाव पड़ने लगा कि कुमारी मायावती को इतना अवसर प्रदान न करें, इतना ही नहीं कुछ तो संगठन छोड़कर चले भी गए। मुझे नहीं मालूम कि अब वे लोग कहाँ हैं ? जहाँ कि कुमारी मायावती ने संगठन के साथ आगे बढ़ने का सिलसिला जारी ही रखा।

बहुजन समाज पार्टी ने सन १९९३ तक इतनी सफलता अर्जित कर ली कि उप्र सरकार स्थापित करने में एक प्रमुख हिस्सेदार बन गई। मुलायम सिंह के नेतृत्व में एक गठबंधन सरकार का गठन किया गया जिसमें मुलायम सिंह को प्रदेश का मुख्यमंत्री और कुमारी मायावती को गठबंधन का संयोजक ( Co-Ordinator ) नियुक्त किया गया। बहुजन समाज पार्टी को सन १९९६ तक एक राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनाने के लिए मैं सम्पूर्ण भारत का दौरा करता रहा, व्यस्तता और अतिरिक्त कार्य के बोझ के कारण मैं बीमार हो गया और इलाज के लिए मई १९९५ में मुझे अस्पताल में भर्ती होना। बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के गठबंधन सरकार को उप्र विधानसभा में बहुमत प्राप्त नहीं हो रहा था, इसके लिए मैंने श्री नरसिंहराव और श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह से मुलायम सिंह के नेतृत्व में उप्र में गठबंधन सरकार स्थापित करने के लिए समर्थन प्राप्ति का अनुरोध किया, श्री मुलायम सिंह के प्रति कटु अनुभव के कारण वे समर्थन देने के पक्ष में नहीं थे लेकिन मेरे आश्वासन और अनुरोध पर उन्होंने समर्थन देने की स्वीकृति दे दी। कुछ महीने पश्चात श्री मुलायम सिंह ने कांग्रेस पार्टी में विघटन करवा दिया इसलिए मुलायम सिंह के नेतृत्व परिवर्तन का दबाव मुझ पर पड़ने लगा।

एक तरफ तो मुझ पर उप्र सरकार के नेतृत्व परिवर्तन का दबाव बढ़ता जा रहा था, दूसरी तरफ मैं अपने स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीड़ित बीमार पड़ा हुआ था। उस समय श्री जयंत मल्होत्रा मेरे साथ थे। कुमारी मायावती और श्री मल्होत्रा ने मुझे अस्पताल में भर्ती करा दिया। अस्पताल में डॉक्टरों द्वारा मेरे स्वास्थ्य का गहन परीक्षण के आधार पर श्री मलहोत्रा ने कुमारी मायावती से कहा कि श्री कांशीराम जी इस समय बहुत गंभीर समस्याओं के दौर से गुजर रहे हैं, ऐसी समस्याओं से पीड़ित उनके पिता का ( मल्होत्रा के पिताजी का ) लंदन के एक अस्पताल में निधन हो गया था। यह सुनकर कुमारी मायावती बहुत निराश हो गयीं,  अनेकों विचार एक साथ उनके मन में उभरने लगे,  उनके भविष्य का क्या होगा?, अगर कांशीराम नहीं रहे तो , उनका मार्गदर्शन और इस संगठन को चलाने में उनकी सहायता कौन करेगा? सेवा सुश्रुषा पर नियुक्त परिचारिका ने मुझे बताया कि कुमारी मायावती को उसने कक्ष के बाहर कई बार अश्रपूर्ण नेत्रों सहित शोकाकुल अवस्था में देखा है। कुमारी मायावती को मैंने कक्ष के अंदर बुलाया और उनसे पूछा कि " मायावती, आप उप्र की मुख्यमंत्री बनना पसंद करेंगी? " इतना सुनकर उन्हें मेरे शब्दों पर विश्वास ही नहीं हुआ, उन्होंने सोचा कि मेरी हालत ने बीमारी की वजह से गंभीरता का रूप धारण कर लिया है जिसकी वजह से मैं कुछ अनाप-शनाप बोलने लगा हूँ। मैंने उन्हें विश्वास दिलाया कि उसे उप्र की मुख्यमंत्री बनाने की क्षमता मुझमें है, मैंने सारे दस्तावेज जो मुख्यमंत्री बनने के लिए चाहिए थे इन्हें दिखाते हुए कहा कि लखनऊ जाकर ये सारे दस्तावेज उप्र के तत्कालीन राज्यपाल के सुपुर्द कर दें, वे मुख्यमंत्री के पद और गोपनीयता की शपथ तथा विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने के लिए १५ दिन के समय का आदेश दे देंगे। विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने के लिए सारा प्रबंध कर लिया गया था। मायावती १ जून १९९५ को राज्यपाल से मिली, लेकिन २ जून के रात को मुलायम सिंह ने उनके लिए एक बहुत बड़ी समस्या खड़ी कर दी। जीवन में आखरी बार उनके धैर्य की कड़ी परीक्षा थी, साहस से काम लेते उन्होंने अपने आप को सुरक्षित रखा और ३ जून १९९५ को उप्र की मुख्यमंत्री के पद और गोपनीयता की शपथ ग्रहण की।

जीवन में कई बार उन्हें धैर्य की कड़ी परीक्षाओं से गुजरना पड़ा, साधारण साहस के साथ अपने आप को पुनस्थापित करना उनके लिए संभव नहीं था, धैर्य से काम लेते हुए दो बार उप्र के मुख्यमंत्री पद , दो बार लोकसभा प्रतिनिधि और एक बार राज्यसभा के प्रतिनिधि पद को प्राप्त करने का गौरव प्राप्त किया, ये महान उपलब्धियाँ उनके अदम्य साहस की द्योतक हैं। उप्र के मुख्यमंत्रित्व काल में उनकी अनेक विशिष्टताएं परिलक्षित हुई लेकिन अदम्य साहस ही उनमें सर्वोपरि रहा।



कांशीराम
राष्ट्रीय अध्यक्ष
बहुजन समाज पार्टी 
नई दिल्ली 
17 मार्च 2001






जयभीम नमोबुध्दाय 

Sobran Singh


Saturday, September 12, 2020

मैं बहुत दिनों से बहनजी के बारे में सोच रहा हूँ, बहनजी को कहा ले जाना चाहती हैं ?

मैं बहुत दिनों से बहनजी के बारे में सोच रहा हूँ, बहनजी को कहा ले जाना चाहती हैं ?




बहनजी खुद को छोड़कर दूसरों के ऊपर चुनाव परिणाम की जिम्मेदारी ठहराकर पार्टी से बाहर कर देती हैं और बिना कारण बताए सिर्फ इतना कहकर पार्टी से बाहर कर दिया जाता है कि अनुशासनहीनता की वजह से पार्टी से बाहर किया जाता है।
कांशीराम साहेब ने जो बिग्रेड खड़ी की थी, बहनजी ने सभी राज्यों की उस बिग्रेड को पार्टी से बाहर कर दिया, मान्यवर साहेब ने गांव से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के नेतृत्व सभी राज्यों में तैयार की थी ताकि ये मिशन जल्द ही केन्द्र व राज्यों में अपनी सरकार बना सके, लेकिन आज ये मिशन अपने अस्तित्व को लगातार खोता जा रहा है..?


मैं अपनी सोचता हूँ कि हो सकता है बहनजी ये सोचती हों कि बहुजनों का इतिहास मेरे तक ही पढ़ा जाए, मेरे बाद फिर कोई नए तरीके से जब कभी संघर्ष करे तो वो इस बहुजन समाज का नेतृत्व करता मिले..?
बहनजी अपने जीते जी अपने से बड़ा लीडर बनते हुए इस बहुजन समाज में न देखना चाहती हों..?


मैं ऐसा इसलिए सोच रहा हूँ क्योकि जब मैं बहुजनों के इतिहास को देखता हूँ तो एक व्यक्ति के संघर्ष के बाद उन्हें मिशन को आगे बढ़ाने के लिए उत्तराधिकारी नही मिले, उनके बाद मिशन रुक जाता फिर कई वर्षों बाद कोई नये व्यक्ति आते और इस बहुजन समाज को जागरूक करने व इनके हक़ अधिकारों की लड़ाई लड़ते फिर उनके दुनिया से जाने के बाद संघर्षों की कड़ी टूट जाती, यहाँ तक कि इस बहुजनों के लिए संघर्ष करने वालों की हत्याएं भी कर दी जाती रही हों जो इतिहास के पन्नो में नही हैं..?


मैं समझता हूँ बुद्ध के बाद मिशन को उनके अनुयायियों द्वारा ज्यादा दिनों तक न बढ़ा सकें, सम्राट अशोक के बाद मिशन रुक गया, कबीर,रविदास के बाद मिशन रुक गया, यहां तक मिशन को जिंदा करने के लिए हजारों साल बाद कोई व्यक्ति हिम्मत कर मनुवाद से लड़ा और बहुजनों को एक बाद हजार साल बाद नेतृत्व मिलता..?




बहुजन मिशन को गति महात्मा ज्योतिबा फुले व सावित्री बाई फुले के संघर्षों से गति मिले इनके जाने के बाद कुछ ही वर्षों में छत्रपति कुर्मी साहू महाराज ने मिशन को गति दिया इनके बाद के बाद बाबा साहेब ने मिशन को को गति दिया और बहुजनों को सम्पूर्ण हक-अधिकार दिलाने में सफल रहे लेकिन यहाँ तक के संघर्षों में कुछ ही वर्षों तक मिशन की गति रुकती फिर कुछ वर्षों में नए महापुरुष आकर मिशन को गति देते रहें।


जब बाबा साहेब को इस समाज को चलाने के लिए नेतृत्व नही मिला तो बाबा साहेब बहुत दुखी हुए कि मेरे जाने के बाद ये हक-अधिकार सुरक्षित भी रहेंगे या इन्हें पुनः समाप्त कर दिया जाएगा क्योंकि मुझे इस समाज में अभी तक कोई लायक व्यक्ति नही दिखा जो इस मिशन को आगे बढ़ा सके, तब बाबा साहेब ने पूरे समाज से विनती की और कहा मैं इस कारवां को बड़े मुश्किल से यहाँ तक लाया हूँ यदि आप लोग इसे आगे नही ले जा पाना तो इसे पीछे भी मत जाने देना ।


बाबा साहेब के जाने के बाद कुछ ही वर्षों में मान्यवर कांशीराम साहेब मिशन को गति देने के लिए आ गए और मान्यवर साहेब बहुजनों के इतिहास को गहराई से 
अध्ययन किये और बाबा साहेब द्वारा लिखे गए सभी पत्र व किताबों की अध्ययन कर बहुजनों के सम्पूर्ण इतिहास को जाना और मान्यवर साहेब ने कसम ली अब मैं इस मिशन की गति को कभी नही रुकने दूंगा, बाबा साहेब के सपनों को पूरा करूँगा, इस बहुजन समाज को शासक बनाऊंगा व गांव गांव में नेतृत्व करता पैदा करूँगा और मान्यवर साहेब ने भारत के कोने कोने में नेतृत्व तैयार किया और अपने जीते जी उप्र में तीन बार सरकार बनवाई व अपने जीते जी पूरे भारत से नेतृत्व को खोजकर इस बहुजन समाज का नेतृत्व एक महिला बहन कुँवारी मायावती जी के हाथों सौंप दिए और भारतीय इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिए कि महिला कमजोर नही होती वो पूरे देश का नेतृत्व कर सकती है और बहनजी आज पूरे देश में नेतृत्व कर रही हैं और समाज को शासक बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय ले रही हैं, जिससे मेरे जाने के बाद भी इस बहुजन समाज के लोग मुख्य शासक बनते रहें।




मैं बहनजी पर बहुत सारे सवाल खड़ा करता रहा, मुझे उत्तर नही मिल रहे थे, मैं समझ नही पा रहा था बहनजी इस मिशन को आगे बढ़ा रही हैं या मान्यवर साहेब के बनाये बिग्रेड को गिराकर मिशन को समाप्त कर रही हैं..?
तब समझ आया कि बैचमेट यदि फेल हो जाये तो उतना दुख नही लगता, जितना उसके टॉप करने से दुःख लगता है, यही बहनजी के साथ होने लगा जिस बिग्रेड को मान्यवर साहेब ने एकता के सूत्र में पिरोया और सिखाया कि एक दूसरे का हाथ पकड़कर चलना लेकिन मान्यवर साहेब के जाने के बाद बिग्रेड में दरार पड़ गई, जिन साथियों को बहनजी का साथ देना था पूरे भारत मे सत्ता स्थापित करने के लिए वही साथी पार्टी से दूरियां बनाना शुरू कर दिए, और वो अन्य दलों से समझौता कर अंदरूनी बसपा को घात पहुंचाने लगे, मैं उन पर इल्जाम नही लगा रहा हूँ जो सच्चाई है वो बता रहा हूँ, बहनजी ने आज तक जिन जिन को जिम्मेदारी दी है वो सभी विश्वासघात कर आज भाजपा,कांग्रेस की झोली में बैठे हैं, जिन्हें विश्वास न हो वो सभी राज्यों में देख सकते हैं जितने नामी-गिनामी लीडर थे वो आज कहाँ हैं..?
बहनजी समझने लगीं ये हमारे साथी आज उतना ओजस्व से कार्य नही कर रहे जिसकी वजह से परिणाम कम हो रहे हैं, आज बसपा अपने अस्तित्व को बचाने के लिए लड़ रही है क्योंकि जितने लोग पार्टी से निकलते हैं वो बहनजी पर इल्जाम लगा रहे हैं व कई ऐसे सामाजिक व राजनीतिक संगठन चल रहे हैं जो सिर्फ बहनजी को बदनाम करने के लिए चलाए जा रहे हैं ताकि बसपा को समाप्त इस देश मे दो ही पार्टी रह सकें भाजपा व कांग्रेस।
हमारे बहुजन समाज के लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि यदि बहनजी गलत होती तो आज वो अन्य बहुजन नेताओं की तरह मंत्री होतीं लेकिन बहनजी इस समाज को मंत्री नही मुखिया बनाना चाहती हैं इसलिए वो मिशन के साथ समझौता नहीं करती ।


अब बहुजन समाज के लोगों व बुद्धिजीवियों को समझने की जरूरत है कि यदि जिस बिग्रेड को कांशीराम साहेब ने तैयार की उस बिग्रेड को बहनजी ने बाहर कर दिया है, यदि वो बिग्रेड मान्यवर साहेब के जाने के बाद सही काम कर रहे थे तो वो सभी आज तक एक क्यूँ नही हुए, वो सभी तो एक दूसरे को जानते थे, तो आज तक एक क्यों नही हुए और एक मंच में एक साथ आकर बहनजी के खिलाफ आवाज क्यों नही उठा सके, क्यों वो सभी अलग अलग राह में चल रहे हैं, कोई भाजपा में है तो कोई कांग्रेस में या कोई नया दल बनाकर चल रहे हैं, 


इससे क्या कहेंगे बहनजी गलत हैं, और जो ये भाजपा,कांग्रेस की झोली में बैठकर व भाजपा,कांग्रेस से रुपये लेकर नई पार्टी बनाकर चला रहे हैं और बहनजी व बसपा का विरोध कर रहे हैं कि बहनजी ने मान्यवर साहेब के रास्ते को छोड़ दिया है, वो सिर्फ समाज को गुमराह कर रहे हैं यदि ये सही होते तो मान्यवर साहेब की तरह सबको एक कर लेते और बहनजी गलत होती तो उन्हें सही रास्ते ले आते लेकिन गलत तो यही सभी हैं तभी तो अलग अलग राह चल रहे हैं।


एक कहावत तो सभी ने सुनी होगी उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे।
यही कहावत है ये सभी अपनी गलती को स्वीकार करने की बजाय, बजाय बहनजी को कह रहे हैं।


मेरे बहुजन समाज के साथियों बुध्दिजीवियों समझने का प्रयास करें और बहनजी का साथ दें।


बहनजी कल भी सही थीं और आज भी सही हैं जो समाज को शासक बनाने के लिए, कई हथकंड्डे अपना रही हैं।


बहनजी अपने जीते जी इस बहुजन समाज को नेतृत्व सौंपना चाहती हैं इसलिए वो चेहरों की तलाश कर रही हैं, पार्टी में 50% युवाओं को भागीदारी सौंप दी हैं ताकि ये युवा समाज के लिए तैयार हो सकें और इस मिशन को गति के साथ आगे बढ़ाते रहें।


समय बहुत कम है भाजपा सरकार कई निर्णय ले चुकी है बहुजन मूलनिवासियों को गुलाम बनाने के लिए, उसका अगला लक्ष्य इस देश का तिरंगा झंडा व संविधान बदलना है।


इसलिए समय की नजाकत को समझे और खुद की सोच समझ से निर्णय लें और बहनजी का देकर बसपा को मजबूत करें ताकि बहुजन महापुरुषों के सपनों का देश बनाया जा सके व बहुजनों के हक-अधिकार सुरक्षित रहें, जो बड़ी ही मुश्किल से बाबा साहेब ने दिलाये हैं।


मान्यवर साहेब कहते थे समय बहुत कम है कुछ को मैं जागता हूँ,कुछ को आप जगाइए ताकि इस समाज को हुक्मरान बनाया जा सके।


जो लोग कहते हैं बहनजी ने पार्टी में ब्राह्मण,ठाकुर,बनिया को पार्टी ने शामिल कर बहुत गलत की हैं, वो समझे भाजपा हिन्दुत्व को लेकर चलती है फिर मुस्लिमों को भाजपा में शामिल करके रखी है,सासंद,विधायक बनाती है, राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाकर रखी है फिर भी कभी भाजपा कार्यकर्ता के मुंह से सुने हैं कि भाजपा अपनी राह से भटक गई है इसका विरोध करो, उन्हें पता है हम इनके वोट लेकर शासक बनेंगे और हिंदुत्व को मजबूत करेंगे।
जबकि बसपा का मिशन तो हिस्सेदारी का है, मानवता का है, मान्यवर साहेब पेन के माध्यम से खड़ी व्यवस्था को बराबर करने की बात करते थे वो कभी नही कहे कि इसे उल्टा करना है।


जो लोग आज उलता करने की बात करते हैं वो महापुरुषों के मानवता के मिशन को धोखा देने का काम रहे हैं।


अब तक तो समझ गए होंगे बहनजी ही बहुजनों की हितैसी हैं बाकी तो बहुजनों को कमजोर करने के लिए कार्य कर रहे हैं इसलिए बसपा के अलावा अन्य राजनीतिक संगठनों का साथ देना बंद करें और आज से बसपा के लिए कार्य करना शुरू कर दें ताकि संविधान को बचाया जा सके,जहां हम सभी के हक-अधिकार सुरक्षित हैं।


बहुजनों यदि अब नही समझे, तो दूबारा ये भाजपा,कांग्रेस हजारों साल तक हम बहुजनों को समझने का मौका नहीं देंगीं, गुलाम बनाये रखेंगीं।
आने वाले आगामी चुनावों में अपने-अपने राज्यों से भाजपा,कांग्रेस व अन्य मनुवादी पार्टीयों को उखाड़ फेंके व अपने अपने राज्यों में और केंद्र में बसपा की सरकार बनाएं ।


बाबा साहेब अमर रहें!
मान्यवर साहेब अमर रहें!
बहनजी जी संघर्ष करो हम बहुजन आपके साथ हैं।
बसपा जिन्दाबाद
बहनजी जिन्दाबाद
नमो बुद्धाय जय भीम जय भारत

      निवेदक
       रावेंद्र कुमार साकेत
        रीवा (मप्र)

          


सुनो कल के लड़को जितनी तुम्हारी उम्र भी नही हैं.. उतना 41 साल का तो बहन जी का सँघर्ष हैं.

👉सुनो कल के लड़को जितनी तुम्हारी उम्र भी नही हैं.. उतना 43 साल का तो बहन मायावती जी का सँघर्ष हैं.👈 यही हैं वो मासूम सी लड़की जो...