सिंह साहब के विद्यालय से :- अतुलनीय महिला कु. मायावती

सिंह साहब के विद्यालय से :- अतुलनीय महिला कु. मायावती




आज आपके लिए अठारह साल पहले बहनजी के जन्मदिन के मौके, 15 मार्च 2002 पर जारी की गई लेखक श्री अशोक गजभिये जी की किताब " अतुलनीय महिला मायावती " की प्रस्तावना जोकि मान्यवर कांशीराम साहब ने खुद लिखी थी, उसका हिंदी अनुवाद। 

एक अनुरोध इसे समय निकल कर पढ़े जरूर ही आपको तत्कालीन मिशन-मूवमेंट की जानकारियां जोकि 
साहब के खुद ही इस पुस्तक की प्रस्तावना के माध्यम से आपको उपलब्ध करवायीं हैं। जो निश्चय ही 
आपकी तर्कशीलता बढ़ाने में सहायक सिद्ध होंगी।
सोबरन सिंह आगरा से


           अतुलनीय महिला कु. मायावती

BSP SUPREMO






इन दिनों मेरे लिए गंभीरता से कुछ लिखने की असमर्थता का प्रमुख कारण समयाभाव ही रहा है, इसी दौरान श्री अशोक गजभिये कई बार मुझसे आग्रह करते रहे कि इनके द्वारा लिखित पुस्तक " अतुलनीय महिला मायावती " की प्रस्तावना और कुमारी मायावती का परिचय मैं अपने शब्दों में लिखूं। कु० मायावती का मार्गदर्शक और सदुपदेशक होने के नाते मेरे लिखने की इच्छा तो बहुत थी परंतु मैं निर्णय नहीं ले पा रहा था कि कहाँ से आरंभ करूँ और कहाँ समाप्त।  आज दिनाँक सत्रह मार्च सन २००१ को कु० मायावती ने ही लेखक द्वारा हाल में किये गए निवेदन के बारे में मुझे अवगत कराया कि उनकी पुस्तक की प्रस्तावना मैं खुद लिखूं, जिसे वे शीघ्र प्रकाशित करना चाहते हैं। समय की अनुउपलब्धता को ध्यान में रखते हुए मैंने निश्चय किया कि कु० मायावती के केवल महान विशिष्टताओं पर ही प्रकाश डालूं।
अदम्य साहस

कु० मायावती के अंदर निहित महान विशिष्टताओं ने ही इन्हें अद्वितीय महिलाओं की श्रेणी में ला खड़ा कर दिया। मेरे विचार से इन्हीं विशिष्टताओं ने इन्हें अदम्य साहसी बना दिया। रामलीला मैदान दिल्ली में आयोजित सभा में एक विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए इन्होंने अपना संपूर्ण जीवन उस शोषित समाज के उत्थान के लिए समर्पित करने की घोषणा कर डाली जिस समाज में इन्होंने जन्म लिया। इनकी इस घोषणा से वातावरण हर्षोउन्मादित नेताओं के तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा, परंतु इनके शोषित समाज के उत्थान के लिए समर्पित सम्पूर्ण जीवन का मनतव्य इनके पिता को पसंद न था, वे तो अपनी पुत्री के आरामदेह जीवन व्यतीत करने की अभिलाषा अपने मन में संजोए हुए थे।

पीड़ित और शोषित वर्ग के उत्थान के लिए महात्मा ज्योतिबा फुले द्वारा शुभारंभ संघर्ष को छत्रपति शाहू महाराज ने गति प्रदान की, जिसे बाबासाहेब आम्बेडकर ने सम्पूर्ण भारत में सफलता की ओर अग्रसर करते हुए संघर्ष क्रम जारी रखा, समय की माँग को देखते हुए कांशीराम ने इसी संघर्ष को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठा लिया। अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध कुमारी मायावती ने भी इसी संघर्ष में अपने आप को जोड़ने का निश्चय कर लिया। उसी समय उनके धैर्य के परीक्षा की घड़ी भी आ गई। इनके दृढ़ निश्चय के विरुद्ध अपने पिता के प्रतिकार के फलस्वरूप इन्हें अपना घर त्यागना पड़ा। उन दिनों मैं दौरे पर था , वापस आने पर मैंने देखा कि कुमारी मायावती कुछ अन्य कर्मचारियों के साथ कार्यालय में ही रह रहीं हैं। सरकारी स्कूल में अध्यापिका होने की वजह से वे पूर्णरूप से आत्मनिर्भर थीं, अपने करोलबाग स्थिति कार्यालय के समीप ही मैंने इनके आवास की व्यवस्था करवा दी।अध्यापन कार्य वे सुबह ही कर लेती थीं और शेष समय कार्यालय का काम देखती थीं, तथा कानून के अध्ययन के लिए शाम के समय कॉलेज जाया करती थीं, इस तरह से इन परिस्थितियों का सामना करते हुए इन्होंने कानून में स्नातक की उपाधि प्राप्त कर ली। इस बार इन्हें धैर्य की परीक्षा से गुजरना पड़ा, संगठन से जुड़े हुए इनसे वरिष्ठ कार्यकर्ताओं द्वारा इनका सख्त विरोध होने लगा, अपने को संगठन में पूर्णरूप से स्थापित करने के लिए उनके खिलाफ भी संघर्ष करना पड़ा।

सन १९८४ में लोकसभा का आमचुनाव दिसंबर के महीने में होने वाला था, और इन्होंने चुनाव लड़ने का मन बना लिया था। बहुजन समाज पार्टी के किसी भी उम्मीदवार को इस चुनाव में सफलता मिलने की संभावना कम ही थी, पार्टी के कई लोग इन्हें चुनाव न लड़ने की सलाह भी दे रहे थे, क्योंकि ये एक सरकारी कर्मचारी थीं, चुनाव में भाग लेने से सरकारी नौकरी खोना पड़ सकता था। धैर्य की परीक्षा से इन्हें एक बार फिर गुजरना पड़ा, इन्होंने एक साहसिक कदम उठाया और चुनाव में भाग लेने के लिए सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया, चुनाव में इन्हें सफलता तो नहीं मिली और इनकी नौकरी भी नहीं रही, लेकिन इनसे वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की नौकरियाँ सुरक्षित थीं। इनके इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मैं इन्हें अपना पूर्ण सहयोग और अधिक अवसर प्रदान करने लगा। सन १९८५ में बिजनौर लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव में भाग लेने की पूर्व तैयारी करने के लिए इनसे कहा गया था, गाँव-गाँव जाकर प्रचार अभियान का कार्य इतने प्रभावशाली ढंग से किया कि एक वर्ष की अवधि में ही पिछले बार प्राप्त९७०० मतों की अपेक्षा इस बार इन्होंने ६५००० मतों को प्राप्त किया।

इसके उपरांत बिजनौर के नजदीकी चुनाव क्षेत्र हरिद्वार की उम्मीदवारी के लिए उपचुनाव सम्पन्न कराने का आदेश जारी हो गया। इस चुनाव के लिए भी इन्होंने बहुत अच्छी तरह से तैयारी की जिसके फलस्वरूप १३६००० मत प्राप्त कर सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के बाद दूसरे नम्बर पर आयीं थीं। इस तरह से इन्होंने पहले के आमचुनाव में ९७०० मतों के मुकाबले इस उपचुनाव में १३६००० मत प्राप्त कर बहुजन समाज पार्टी को १४ गुना मतों की बढ़ोतरी प्राप्त कर दी। चुनावों में इनकी उपलब्धियों को देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई लेकिन इनसे वरिष्ठ कार्यकर्ताओं  में कुछ नाराजगी की झलक दिखाई देने लगी और उनका मुझ पर दबाव पड़ने लगा कि कुमारी मायावती को इतना अवसर प्रदान न करें, इतना ही नहीं कुछ तो संगठन छोड़कर चले भी गए। मुझे नहीं मालूम कि अब वे लोग कहाँ हैं ? जहाँ कि कुमारी मायावती ने संगठन के साथ आगे बढ़ने का सिलसिला जारी ही रखा।

बहुजन समाज पार्टी ने सन १९९३ तक इतनी सफलता अर्जित कर ली कि उप्र सरकार स्थापित करने में एक प्रमुख हिस्सेदार बन गई। मुलायम सिंह के नेतृत्व में एक गठबंधन सरकार का गठन किया गया जिसमें मुलायम सिंह को प्रदेश का मुख्यमंत्री और कुमारी मायावती को गठबंधन का संयोजक ( Co-Ordinator ) नियुक्त किया गया। बहुजन समाज पार्टी को सन १९९६ तक एक राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनाने के लिए मैं सम्पूर्ण भारत का दौरा करता रहा, व्यस्तता और अतिरिक्त कार्य के बोझ के कारण मैं बीमार हो गया और इलाज के लिए मई १९९५ में मुझे अस्पताल में भर्ती होना। बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के गठबंधन सरकार को उप्र विधानसभा में बहुमत प्राप्त नहीं हो रहा था, इसके लिए मैंने श्री नरसिंहराव और श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह से मुलायम सिंह के नेतृत्व में उप्र में गठबंधन सरकार स्थापित करने के लिए समर्थन प्राप्ति का अनुरोध किया, श्री मुलायम सिंह के प्रति कटु अनुभव के कारण वे समर्थन देने के पक्ष में नहीं थे लेकिन मेरे आश्वासन और अनुरोध पर उन्होंने समर्थन देने की स्वीकृति दे दी। कुछ महीने पश्चात श्री मुलायम सिंह ने कांग्रेस पार्टी में विघटन करवा दिया इसलिए मुलायम सिंह के नेतृत्व परिवर्तन का दबाव मुझ पर पड़ने लगा।

एक तरफ तो मुझ पर उप्र सरकार के नेतृत्व परिवर्तन का दबाव बढ़ता जा रहा था, दूसरी तरफ मैं अपने स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीड़ित बीमार पड़ा हुआ था। उस समय श्री जयंत मल्होत्रा मेरे साथ थे। कुमारी मायावती और श्री मल्होत्रा ने मुझे अस्पताल में भर्ती करा दिया। अस्पताल में डॉक्टरों द्वारा मेरे स्वास्थ्य का गहन परीक्षण के आधार पर श्री मलहोत्रा ने कुमारी मायावती से कहा कि श्री कांशीराम जी इस समय बहुत गंभीर समस्याओं के दौर से गुजर रहे हैं, ऐसी समस्याओं से पीड़ित उनके पिता का ( मल्होत्रा के पिताजी का ) लंदन के एक अस्पताल में निधन हो गया था। यह सुनकर कुमारी मायावती बहुत निराश हो गयीं,  अनेकों विचार एक साथ उनके मन में उभरने लगे,  उनके भविष्य का क्या होगा?, अगर कांशीराम नहीं रहे तो , उनका मार्गदर्शन और इस संगठन को चलाने में उनकी सहायता कौन करेगा? सेवा सुश्रुषा पर नियुक्त परिचारिका ने मुझे बताया कि कुमारी मायावती को उसने कक्ष के बाहर कई बार अश्रपूर्ण नेत्रों सहित शोकाकुल अवस्था में देखा है। कुमारी मायावती को मैंने कक्ष के अंदर बुलाया और उनसे पूछा कि " मायावती, आप उप्र की मुख्यमंत्री बनना पसंद करेंगी? " इतना सुनकर उन्हें मेरे शब्दों पर विश्वास ही नहीं हुआ, उन्होंने सोचा कि मेरी हालत ने बीमारी की वजह से गंभीरता का रूप धारण कर लिया है जिसकी वजह से मैं कुछ अनाप-शनाप बोलने लगा हूँ। मैंने उन्हें विश्वास दिलाया कि उसे उप्र की मुख्यमंत्री बनाने की क्षमता मुझमें है, मैंने सारे दस्तावेज जो मुख्यमंत्री बनने के लिए चाहिए थे इन्हें दिखाते हुए कहा कि लखनऊ जाकर ये सारे दस्तावेज उप्र के तत्कालीन राज्यपाल के सुपुर्द कर दें, वे मुख्यमंत्री के पद और गोपनीयता की शपथ तथा विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने के लिए १५ दिन के समय का आदेश दे देंगे। विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने के लिए सारा प्रबंध कर लिया गया था। मायावती १ जून १९९५ को राज्यपाल से मिली, लेकिन २ जून के रात को मुलायम सिंह ने उनके लिए एक बहुत बड़ी समस्या खड़ी कर दी। जीवन में आखरी बार उनके धैर्य की कड़ी परीक्षा थी, साहस से काम लेते उन्होंने अपने आप को सुरक्षित रखा और ३ जून १९९५ को उप्र की मुख्यमंत्री के पद और गोपनीयता की शपथ ग्रहण की।

जीवन में कई बार उन्हें धैर्य की कड़ी परीक्षाओं से गुजरना पड़ा, साधारण साहस के साथ अपने आप को पुनस्थापित करना उनके लिए संभव नहीं था, धैर्य से काम लेते हुए दो बार उप्र के मुख्यमंत्री पद , दो बार लोकसभा प्रतिनिधि और एक बार राज्यसभा के प्रतिनिधि पद को प्राप्त करने का गौरव प्राप्त किया, ये महान उपलब्धियाँ उनके अदम्य साहस की द्योतक हैं। उप्र के मुख्यमंत्रित्व काल में उनकी अनेक विशिष्टताएं परिलक्षित हुई लेकिन अदम्य साहस ही उनमें सर्वोपरि रहा।



कांशीराम
राष्ट्रीय अध्यक्ष
बहुजन समाज पार्टी 
नई दिल्ली 
17 मार्च 2001






जयभीम नमोबुध्दाय 

Sobran Singh


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