सिंह साहब के विद्यालय से :- कल की अमर उजाला अखबार की पोस्ट से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बातें आज


कल की अमर उजाला अखबार की पोस्ट से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बातें आज ।

गौर तलब है ! बहुजनों की खबर को दलितों की खबरें बना कर चतुर्थवर्ण व्यवस्था के ही अनुरूप अखबार के अंतिम कॉलम 7वें 8वें में स्थान देना । जबकि मान्यवर कांशीराम साहब के अथक प्रयासों से बहुजन समाज पार्टी  सन 1995 तक आते आते भारत की राजनीति का केंद्र बिंदु बन चुकी थी। जबकि लेख के लेखक की यह बात उसके  लेख के उक्त शीर्षक "दलितों पर केंद्रित होती राजनीति" से बिल्कुल ही स्पष्ट हो रही है अर्थात एक मायने में लेख के शीर्षक में ही लेखक की स्वीकारोक्ति छिपी हुई है ।


साहब (कांशीराम) ने जिस दिन बहुजन समाज पार्टी का गठन किया था उसी दिन कहा था कि #बहुजनसमाज के बनते ही हम इस देश के शासक बन जायेगें । बहुजन समाज को शासक बनने से कोई ताकत नहीं रोक सकती है । क्योंकि बहुजन समाज के पास 100 में 85 वोट हैं और लोकतंत्र में हमेशा ज्यादा वोट वालों की ही हुकूमत होती है।

" जीतेगा भई जीतेगा,वोटों वाला जीतेगा
   हारेगा भई हारेगा, नोटों  वाला  हारेगा  "

मैं समझता हूँ आप ये बसपा का नारा अभी तक बहुजन भूले नहीं होगें और यह भी साहब ही कहते थे कि शासक वर्ग कभी भी दलित नहीं होता । ताज्जुब तो तब होता है जब आज का मिडिया महामहिम राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविद जी को दलित राष्ट्रपति लिखता है ? बहन सुश्री मायावती जी को दलित की नहीं दौलत की बेटी बताता है ?? क्या किसी का चार बार की मुख्यमंत्री बनने के बाद भी दौलतबंद बन जाना गुनाह है ??? उनको आप आज भी  दलित ही मान रहे हो । इतना दोगलापन इनके पास कहाँ से आ रहा है ?  निश्चित ही संविधान लागू होने के सत्तर साल बाद भी इनके दिमाग से मनुस्मृति नहीं निकल पा रही है यह वही लेखन में इनके संस्कार झलक रहे हैं ।


 इसी सब को ध्यान में रखते हुए साहब ने आपको सिर्फ और सिर्फ #बहुजन  शब्द के इस्तेमाल पर सबसे ज्यादा जोर देने के लिए, बहुजन समाज पार्टी बनाते समय 14 अप्रैल 1984 को आगाह भी किया भी था। इसको चतुर चालक मनुवादियों ने बड़ी अच्छी तरह से उसी समय  जान भी लिया था। तभी वह सोची समझी रणनीति के तहत दलित शब्द पर फ़ोकस बनाये हुए हैं ।  बड़ी ही मुश्किल से संघर्षों के बाद बहनजी आपको शब्द 'हरिजन' से मुक्ति दिला पाईं थीं और आप हैं कि दलित में उलझ कर रह गए हैं । दुख तो तब और ज्यादा होता है कि 'हरिजन' शब्द को आप पर थोपने के लिए गांधी एंड कंपनी को उधोगपति मारवाड़ी बनियां बिड़ला के पैसे से 'हरिजन' अखबार निकलने का सहारा लेना पड़ता है और आज आप साधनहीन बहुजनों में  'दलित' नामक पत्र पत्रिकायें निकलने की होड़ मची हुई है? बहुजन बुद्धिजीवी वर्ग भी 'दलित' शब्द को गले लगाने की पैरोकारी करता नजर आरहा है ? ऐसे बहुजन समाज को दुश्मनों की क्या जरूरत है ? 
 
"संभल के रहना अपने घर में छिपे हुए गद्दारों से।"


इस लेख में कई बार लेखक इस बहुजन सरकार को दलित अल्पसंख्यकों की सरकार लिख रहा है ? जबकि यह सरकार श्री कांशीराम जी ( अनुसूचित जाति ) और श्री मुलायम सिंह जी ( ओबीसी ) के गठबंधन पर 85 फीसदी बहुजनों के वोटों से बनी  भारत के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की पहली "बहुजन" सरकार थी । क्या किसी भी मिडियाकर्मी ने इसे "बहुजनों" की सरकार लिखा ? अगर नहीं लिखा तो हमें सोचना होगा कि यह सब क्या है ?  आज इस सरकार को बने लगभग 27 साल बीतने के बाद भी हम सिर्फ वही सोच पा रहे हैं जो ब्राह्मण बनियां मिडिया हमें सूचवा रहा है ? ये मिश्रा जी बसपा में क्या कर रहे हैं??बसपा बहुजन से सर्वजन क्यों बन गई ???  जब ये "बहुजनों" की सरकारों को दलित अल्पसंख्यकों की सरकारें बता रहे थे तब आप मौन क्यों थे ? लेखक का यह बता कर स्पष्ट उद्देश्य है मान्यवर कांशीराम साहब को दलितों तक और श्री मुलायम सिंह को अल्पसंख्यकों ही समेटना कहीं न कहीं इनको "बहुजनों" का नेता न बनने देना । 

जबकि वरिष्ठ पत्रकार श्री अभय कुमार दुबे जी उसी दौर में अपने ब्राह्मण समाज को यह समझते हुए नजर आ रहे थे कि यदि श्री कांशीराम  जी का "बहुजनसमाज" तैयार हो जाता है तो सोचो त्रिवर्णो  तुम्हारे पास क्या बचेगा तुम तो चुनाव में अपनी जमानत भी बचाने की हैसियत में भी नहीं रहोगे? सदियों से अल्पजन होकर तुम सरकार तो इन्हीं भोले भाले बहुजन समाज के दम पर ही तो बनाते आ रहे हो ?  अतः हर हाल में तुम्हारा प्रयास होना चाहिए कि किसी भी तरह से श्री कांशीराम जी का "बहुजनसमाज" तैयार नहीं होना चाहिए । सोचो ! अगर श्री कांशीराम जी का "बहुजनसमाज" तैयार हो जाता है तो, तुम महाअल्पसंख्यकों सवर्णों के पास बचेगा क्या? तुम तो हमेशा के लिए हाशिये पर पहुँच जाओगे और लेखक इस लेख में जिस कांग्रेस भाजपा को मुख्यधारा बता रहा है वह कैसे सरे आम आपकी आंखों में धूल झौंकने का धूर्ततापूर्वक दुःसाहस  करने का काम कर रहा है ? इन सवर्ण लेखकों की लेखनी सवर्ण समाज के हित में लिखने के लिए बाकई में काबिलेतारीफ है !!!

आगे लेखक इसी लेख में इस दलित ( बहुजन नहीं ) उभार का सेहरा भी ठाकुर विश्वनाथ प्रताप सिंह जी के सिर बांधने के लिए इस मंडल कमीशन रिपोर्ट के लागू करने का कारण भी  श्री वीपी सिंह को ही बताता है । जबकि वास्तव में यह मंडल कमीशन रिपोर्ट भी मान्यवर कांशीराम साहब के बहुजन समाज निर्माण हेतु त्रिस्तरीय ( सड़को पर, वोटक्लब पर और देशभर में मंडल कमीशन के समर्थन सेमिनार जैसे आयोजन करने का नतीजा ही थी ) आंदोलनों और चौधरी श्री देवीलाल और श्री कांशीराम साहब के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन की 48वीं वर्षगाँठ के मौके पर 9 अगस्त 1990 के  देशभर के किसानों के वोटक्लब पर महाविशाल सम्मेलन आयोजित करने से प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप जी को लगा कि कहीं ये आंदोलन मेरी कुर्सी ही न खींच ले इसलिए इस सम्मेलन के बेहद दबाब में आनन फानन में इसके ठीक दो दिन पहले 7 अगस्त 1990 को मंडल कमीशन रिपोर्ट को लागू करने के लिए बाध्य होना पड़ा था । इसके बाद ठाकुर साहब की धूर्तता देखिएगा अपने आकाओं भाजपा वालों को खुश करने के लिए ( उन दिनों श्री वीपी सिंह जी की केंद्र  सरकार भाजपा के सहयोग से चल रही थी ) , मंडल कमीशन रिपोर्ट लागू होने के दूसरे दिन ही अपने गृह जनपद इलाहाबाद से इसके विरोध में छात्र आंदोलन की शुरूआत व न्यायालय द्वारा इस पर रोक लगाने जैसे काम सब कुछ इन्हीं श्री वीपी सिंह जी के इशारे पर किये जाते हैं । फिर भी भाजपा लगभग तीन महीने बाद इनकी सरकार गिरा कर मूँछ वाले (VP Singh) की जगह दाढ़ी वाले ठाकुर ( श्री चंद्रशेखर जी ) जी को प्रधानमंत्री बनवाने का काम करती है ।

इस सबमें सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू जो है वह यह है  कि बहुजन समाज के ही वरिष्ठ पत्रकार , शिक्षाविद अपनी  ( जिनकी योग्यता बेशक काबिलेतारीफ है। ) पाठशाला में मेज पर किताबों के ठेर सजा कर के  ज्ञान देते हैं की मंडल मसीहा श्री विश्वनाथ प्रताप जी हैं नकि मान्यवर कांशीराम साहब । यह बात ठीक वैसी ही लगती है , जैसे कि कभी गांधी को हरिजनों का असली मसीहा बताया जा रहा था और  उनके सामने जैसे बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर जी तो कुछ भी नहीं हैं ?  जबकि असलियत में बाबा साहब ही बहुजन समाज की माँ थे और गांधी नर्स ठीक इसी तरह मान्यवर कांशीराम साहब बहुजन समाज की माँ हैं और श्री  वीपी सिंह जी आया ( नर्स ) हो सकते हैं ? यह अंतर पाठशाला प्राचार्य जी को अच्छी तरह से मालुम होने के बावजूद भी आप सब को किस मजबूरी के चलते उनकी पाठशाला में गलत पाठ्यक्रम पढ़ाया जा रहा है ? यह समझ से परे है । ये सब विद्वानों की विद्वत्तापूर्ण बातें हैं, वही ये सब जाने ?

अब कुछ बात बहुजन किसान लोकप्रिय नेता चौधरी चरण सिंह जी के बारे में भी कर ली जाए,1984 में जब बहुजन समाज पार्टी का मान्यवर कांशीराम साहब द्वारा गठन किया गया तो उसी साल चौधरी साहब ने बसपा और लोकदल के समझौते के वास्ते साहब को अपने आवास पर बुलाया भी था । ( विस्तृत विवरण एपिसोड (13) में देख सकते हैं ) लेकिन तब यह बात ब्राह्मणों के लेकर नहीं बनी थी । आपको जानकर आश्चर्य होगा की उसी साल चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश की सारी की सारी एक सीट को छोड़कर 85 में 84 सीटें जीत लीं थी । ऐसी कांग्रेस की प्रचंड लहर के बावजूद भी चौधरी चरण सिंह जी की अकेली बागपत सीट कांग्रेस को हारनी पड़ी थी । ऐसा जलवा था उस समय उत्तरप्रदेश की राजनीति में चौधरी साहब का । उधर उत्तरप्रदेश से सटे हरियाणा में भी बंसीलाल भजनलाल औऱ देवीलाल हरियाणा के तीन लाल हुआ करते थे । जिनका जलवा हरियाणा में हुआ करता था । ये सभी बहुजन समाज से ही ताल्लुक रखते हैं । क्या हुआ इन सब  बहुजन राजनीतिज्ञों का ? आज चौधरी श्री अजीतसिंह जी श्री अखिलेश के मार्फ़त गठबंधन में बमुश्किल तीन सीटें पा रहे हैं और जीत एक भी नहीं पा रहे हैं । यह सारे तथ्य किसी से भी छिपे हुए नहीं हैं । कहाँ है वह जो समता पार्टी कभी राष्ट्रीय पार्टी हुआ करती थी ? कहाँ गईं पूर्व प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर जी की सजपा ?? ये सब पार्टीयाँ बहुजन समाज पार्टी के बाद अस्तित्व में आई हैं । लेकिन आज दूर दूर तक इनका कुछ भी अता पता  नहीं है । और आप कह रहे हैं कि बहनजी क्या कर रहीं हैं ? ट्वीटर ट्वीटर न खेलें सड़क पर आंदोलन क्यूं नहीं करती हैं ? अगर बहनजी आपके हिसाब से चलती तो निश्चित ही आज बसपा भी समता या सजपा की गति को प्राप्त हो चुकी होती । अच्छा किया बहनजी ने जो आपकी नहीं सुन रहीं हैं ? और अपनी कुशल रणनीति से बसपा को निरंतर आगे ही बढ़ाये जा रहीं हैं तमाम सारे विभीषणों के बावजूद भी ।

पिछले पाँच साल से आपको हाथी का अंडा दिखाई दे रहा था लेकिन एक साल से हाथी का स्ट्राइक रेट भारत की सब विपक्षी पार्टियों ( यहाँ तक देश में सबसे ज्यादा समय तक शासन करने वाली व भाजपा से भी ज्यादा साधन संपन्न पार्टी, कांग्रेस पार्टी ) को भी पीछे छोड़ते हुए  सबसे ज्यादा है वह आपको दिखाई नहीं दे रहा है । तमाम सारी विपक्षी राष्ट्रीय व क्षेत्रीय पार्टियाँ अंडा देना तो दूर की बात वह तो  मर चुकी हैं । तो अंडा देगीं कहाँ से ? यह भी आप नहीं देख पा रहे हो ?

अब अंत में कुछ बात बहुजनों की ही समाजवादी पार्टी की भी । अभी दो साल पहले उत्तरप्रदेश के 16 महापौर में 14 भाजपा और 2 बसपा के चुने जाते हैं । बिना किसी के किसी से भी गठबंधन के । सपा कांग्रेस को अंडा मिलता है । कहीं कोई चर्चा नहीं । पता नहीं हाथी कब से बच्चे की जगह अंडा देने लगा शायद 2014 से । बच्चों नोट कर लो आगे चल कर सामान्य ज्ञान का प्रश्न बन सकता है । सपा ने 1914 में पाँच लोकसभा सीट जीती थीं । बाद में बहनजी के इशारे मात्र से गोरखपुर फूलपुर और कैराना भी 3 सीटें सपा के खाते में आ जाती हैं । बहनजी के इस सहयोग पूर्ण रवैया से सपा की इस तरह कुल मिलाकर 5+3=8 सीटें की हो जाती हैं। जबकि बसपा और सपा में आधिकारिक तौर पर अब तक कोई समझौता नहीं हुआ था । यही बहनजी का सहयोग आगे चलकर बसपा सपा गठजोड़ का कारण बनाता है और 12जनवरी 2020 में 50-50 % सीटों का समझौता हो जाता है । उसके बाद प्रदेश भर में इनकी आमसभाएं होती हैं तो श्रीमती डिम्पल यादव जी कन्नौज की सभा में बहन सुश्री मायावती जी को बड़ी उम्र होने के नाते यथायोग्य  सम्मान देती हैं । वही बहनजी को श्रीमती डिम्पल यादव जी का सम्मान देना मिडिया को इतना अखर जाता है कि दूसरे दिन फोटो सहित सभी मनुमिडिया उसको इतना हाईलाइट करते हैं कि भोला भाला बहुजन समाज एक बार फिर इस मनुमिडिया की गिरिफ्त में आ करके उन्हीं श्रीमती डिम्पल यादव जी को कन्नौज सीट से हरवाने का काम कर देता है ।  सिर्फ इसलिए की उन्होंने उम्रदराज बहनजी को इतना सम्मान क्यों दे दिया ? अगर आपकी ये मनुवादियों वाली मानसिकता नहीं होती तो आज सपा की भी 8 से घटकर 5 सीटें न होकर कम से कम 8 से बढ़कर 18 सीटें हो गई होती । और बसपा की 10 के स्थान पर 15 व रालोद भी कम से कम 1 या 2 सीट जीत ही लेता । इस तरह बावजूद EVM उत्तरप्रदेश की लगभग आधी सीटें इस गठबंधन के पास होती और ऐसे हालात में कोई भी बहुजन समाज पर जुल्म ज्यादती करने की बात  तो दूर की बात कोई आंख भी मिलने की हिम्मत भी नहीं कर सकता था ।

आपको एक बात बता कर आज की अपनी बात समाप्त करना चाहूँगा। ये आजतक चैनल का जो नाम है वह श्री  एस पी सिंह ( सुरेंद्र प्रताप ) पत्रकार महोदय का दिया हुआ है । जब श्री मुलायम सिंह जी पहली बार  मुख्यमंत्री बनने के बाद केरल गए तो वहाँ इनका बड़ा ही स्वागत सत्कार हुआ था । यह सब श्री एस  पी सिंह जी को बड़ा ही नागवांर   लगा इन्होंने तब अमर उजाला में एक लेख श्री मुलायम सिंह यादव जी के बिल्कुल ही उनकी प्रसिद्ध के खिलाफ लिख डाला था कि श्री मुलायम सिंह जी की गड्डी गई गड्ढे में , उस पर उसी समय मेरी प्रतिक्रिया थी की आप कितना भी जोर लगा लेना  Mr.SP Singh jee श्री मुलायम सिंह की गड्डी को गड्ढे में नहीं डाल पाओगे ? इस बात को आज तीस साल होने को आये हैं लेकिन अफसोस एस पी सिंह तो इस दुनियां से कूच कर गए हैं लेकिन श्री मुलायम सिंह जी की गाड़ी आज भी बदस्तूर दौड़ रही है । अपनी बात अमर उजाला से शुरुआत करके आज की बात अमर उजाला पर ही समाप्त करना चाहता हूँ । 



                                             
Sobran Singh
                                                                 

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