हमें समाज सेवा या प्रबोधन करना चाहिए.....
समाज सेवा


यही लोग समाज सेवक बनते हैं । अपनी सेवा के बदले फिर समाज से हिसाब-किताब करते हैं । फिर आमदार-खासदार बनकर सौ पीढ़ियों की ब्यवस्था करते हैं । यही भारत के समाज सेवक हैं, जो बाद में समाज के ही सर पर बैठ जाते हैं । बहुत से विधायक, खासदारों का लगभग यही इतिहास है । पर प्रबोधन बिलकुल दूसरी चीज है ।
समाज प्रबोधन
प्रबोधन का मतलब ही लोगों को शिक्षित ही नही, प्रशिक्षित भी करना है । प्रबोधनकार ऐसे काम करता है कि समाज में कोई गरीब न रहे, कोई अमीर न रहे । सबकी जरूरते पूरी हों । ऐसी समाज ब्यवस्था निर्माण करने की सोचता है, ताकि कोई भूखा न हो, कोई बेगार व बेकाम न हो ।
इसी कड़ी में समाज प्रबोधन का कार्य गौतम बुद्ध जी, संत माता कर्मा जी, संत कबीर साहब, संत रविदास जी, परम् पूज्य बाबा गुरु घासीदास जी, महामना ज्योतिबा फुले जी, छत्रपति शाहू जी (कुर्मी) महाराज, बिरसमुंडा जी, संत गाडगे बाबा जी, पेरियार रामास्वामी नायकर जी, बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी व बाद में मान्यवर कांशीराम साहब ने किया । मान्यवर कांशीराम साहब ने जीवन भर आंदोलन व कार्यक्रम किए । उनके कार्यक्रम ही ऐसे थे कि लोगों के जीवन मे बदलाव आए, नया विचार चक्र चालू हो, अपने दुखों का अहसास हो, व उसका उपाय भी हमें अवगत होने लगा ।
अतः हमें इन महापुरुषों की तरह भी समाज प्रबोधन करने का प्रयास करते रहना चाहिए ।
जय सेवा, जय सतनाम,जय भीम
रमेश जाटवर
(लेखक)
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